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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
गुजरात में किया। वि० सं० १९७२ तक भाप गुजरात में ही तीर्थ यात्रा, शास्त्राभ्यास और योगोद्वहन करते हुए विचरे । आपका प्रवचन इतना प्रभावशाली होता था कि व्याख्यान हाल में जगह खिचाखिच भर जाती थी। कभी गुरुमहाराज के साथ और कभी अलग विचरते हुए आपने पांच साधुपों के साथ श्री केसरिया ऋषभदेव की यात्रा कर उदयपुर में वि० सं० १९७५ का चौमासा किया।
समाज में क्रांति-समाज सुधार १. इस चतुर्मास में जैनसमाज में अनेक प्रकार की कुरीतियों का सुधार हुआ। जैसे (१) समाज में वैश्यानृत्य बन्द किया गया। (२) बालविवाह, वृदविवाह तथा अनमेलविवाह को रोकने का प्रबन्ध किया गया। (३) यदि वृद्ध-युवा कोई भी मर जाता तो बिरादरी (पंचायत) को जीमन (मोसर) जिमाना पड़ता था, इस प्रथा को बन्द कराया। (४) समाज सेवा के लिये स्वयंसेवक मंडल की स्थापना कराई । ये सारे कार्य आपके उपदेश और प्रयत्न से हुए।
२. चतुर्मास के बाद करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा के लिये पधारे । यहाँ पर आपके उपदेश से 'मेवाड़ तीर्थ कमेटी' की स्थापना हुई । उस समय इस कमेटी ने प्रापकी निश्रा में एक प्रस्ताव पास किया कि "करेड़ा तीर्थ में जो प्रामदनी हो उसका प्राधा भाग मेवाड़ प्रांत के जीर्ण मंदिरों के उदारार्थ खर्च किया जावे।"
३. वि० सं० १९७१ माघ सुदि ५ को शांतमूर्ति श्री हंसविजय जी महाराज की अध्यक्षता में श्री संपतविजय जी महाराज के पास भगवती सूत्र का आप ने योगोद्वहन किया। पाप को रतलाम में पंन्यास और गणि की पदवी से अलंकृत किया गया। आज से प्राप पंन्यास सोहनविजय जी गणि के नाम से ख्याति में प्राये। यहां से विहार करके पाप इन्दौर पधारे। यहाँ तपागच्छ के अनुयायियों में कई वर्षों से वैमनस्य चल रहा था। आप के उपदेश से वैमनस्य दूर होकर संघ में एकता-संगठन का प्रवेश हुमा । स्थानकवासी साधु, प्रसन्नचन्द्रजी के साथ स्थानक में एक पाट पर बैठकर आप दोनों ने धर्म प्रवचन किया।
४. वि० सं० १९७६ का चौमासा पाप का बाली (राजस्थान) में हुआ ।. अापके उपदेश से यहाँ पर "नवयुवक मंडल" की स्थापना हुई । मुनि श्री ललितविजय जी, मुनि श्री उमंगविजय जी तथा मुनि श्री विद्याविजय जी को आप ने भगवती सूत्र का योगोद्वहन कराकर उन को मार्गशीर्ष सुदि ५ के दिन गणि व पंन्यास पदवी से अलंकृत किया।
यहां से विहार कर बीकानेर आदि होते हुए आप पंजाब पधारे । जीरा, पट्टी, जंडियाला गुरु, अमृतसर, लाहौर होते हुए पाप गुजरांवाला पधारे और वि० सं० १९७८ का चौमासा वयोवृद्ध मुनि सुमतिविजय (बाबा) जी, मुनि श्री विबुधविजय जी व मुनि श्री विचक्षणविजय जी के साथ यहीं पर किया।
पंजाब में क्रांति का श्रीगणेश
(श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब की स्थापना) जैनसमाज में कुछ बुरे रिवाजों और फिजूलखर्ची को देखकर हरेक समाजसुधारक को दिल में एकदम दुःख हुए बिना नहीं रह सकता । इस कुप्रथानों के कारण समाज का मध्यमवर्ग पिस रहा था। जब तक इन को दूर करने का निश्चय न किया जावे तब तक समाज कभी
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