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________________ आदर्शोपाध्याय सोहन विजयजी कराने के लिए विनती करने आये । स्यालकोट में रामतलाई पर ही सार्वजनिक व्याख्यान हुआ करते थे। सब बड़े-बड़े देशनेता भी यहीं अपना भाषण देने आया करते थे । कांग्रेस के मंत्री महोदय की प्रार्थना को स्वीकार करके आपके दो पब्लिक व्याख्यान रामतलाई में हुए । यहां पर स्थानकवासी साधु स्थानापति थे । आपकी भावना थी कि स्थानक में जाकर उनके साथ बैठकर दोनों संप्रदायों के साधु धर्मोपदेश दें । आपने स्थानकमार्गी समाज के दो नेताओंों को बुलाकर अपनी भावना प्रकट की । परन्तु न तो साधुनों ने और न ही श्रावकों ने इस बात को स्वीकार किया। यहां आठ दिन रहकर आप विहार करते हुए वजीराबाद, गुजरात शहर, आदि नगरों में होते हुए जेहलम पहुंचे । वहां के संघ ने आपका शानदार स्वागत किया । श्रात्मानन्द जैन सभा की स्थापना की और एक पब्लिक व्याख्यान हुआ । कुछ दिन यहां ठहरकर नाप पिंडदानखां पहुंचे । fusatarai का सौभाग्य यहां श्वेतांबर जैनों के मात्र चार घर ही थे। यहां पधारने पर यहां के सब संप्रदायों ने मिलकर आपका भावभीना स्वागत किया । चार-पांच पब्लिक व्याख्यान आपके हुए । यहां पांच-छह हजार हिन्दुों की आबादी थी। इनमें दो घड़े ( तड़ ) पड़े हुए थे । यह घड़ेबन्दी इतनी ज़बरदस्त बन चुकी थी कि नित्य नये लड़ाई झगड़े होते रहते थे । आपके उपदेश से दोनों घड़ों में एकता हो गई । आपने अन्य भी अनेक छोटे बड़े झगड़ों का निपटारा किया। जैनों के चार घरों में भी मेल नहीं था, उनका भी मेल-मिलाप करा दिया । ५०१ परम पूज्य स्वर्गवासी आचार्य श्री विजयानन्द सूरि ( आत्माराम ) जी के पूर्वज कलशां ग्राम में रहा करते थे । यह गांव पिंडदादनखां से लगभग तीन मील की दूरी पर था और अभी तक उनके कुटुम्ब के लोग यहाँ पर निवास करते थे । प्राष को वहाँ के लोगों ने भी कलशां पधारने की विनती की। पिंडदानखां से आप भेहरा पधारे । प्राचीन समय में श्वेतांबर जैनों की यहाँ आबादी थी । हम लिख श्राये हैं कि यहां ( पंजाब में ) श्वेतांबर जैनों को भाबड़ा कहते थे । इस समय यहाँ जैनों का कोई घर नहीं था । उनके नाम से यहां भाबड़ों का मुहल्ला अब भी विद्यमान था । इसी मुहल्ले में एक छोटा प्राचीन जैनमंदिर भी उस समय था । यहां आप ने मंदिर के दर्शन किये । एक पब्लिक व्याख्यान भी हुआ। दो दिन की स्थिरता के बाद प्राप वापिस पिंडदानखां पधारे श्रौर वहाँ से गुजरांवाला पधारे। वहां से विहार कर लाहौर होते हुए कसूर में पधारे और यहां पर जेठ सुदिप को स्वर्गवासी गुरुदेव की पुण्य तिथि मनाई और श्री विजयानन्द जैन श्वेतांवर कमेटी की स्थापना की। संघ में कुसंप को मिटाया । फिर जंडियाला गुरु पधारे और वि०सं० १९८० का मासा यहीं किया । (१) आप की निश्रा में श्री मात्मानन्द जैन महासभा का तीसरा वार्षिकोत्सव यहाँ पर हुआ । (२) खरायतीराम लोढ़ा ने नवपद प्रोलीतप की समाप्ति के बाद उद्यापन किया । चौमासे के बाद जालंधर पधारे । अपने बड़े गुरुभाई श्री ललितविजय जी से स्नेह मिलन हुमा । पश्चात् श्री ललितविजय जी ने बम्बई जाने के लिये विहार किया और वहां से होशियारपुर में अपने गुरुदेव श्री वल्लभविजय जी की सेवा में जा पहुंचे । म्राठ दिन गुरु चरणों में रह कर राहों पधारे और रोपड़ होते हुए अंबाला शहर पधारे। गुरुदेव लाहौर पधार चुके थे प्राप भी विहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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