________________
प्राचार्य श्री विजयेन्द्र दिन्न सूरि
समय तक इसी क्षेत्र में विचरते रहे । प्राप अपना अधिकतर समय प्रात्मचिन्तन, जाप ध्यान में तथा मौन रखकर व्यतीत करते थे ।
(१८) आपकी अपनी जीवन यात्रा के अन्तिम वर्षों में यह भावना थी कि उत्तरीभारत में जहाँ भी कोई जैद रहता है, वहाँ मैं अवश्य जाऊंगा और उस की सारसंभाल लूंगा । यह भावना आपने - अपने अन्तिम श्वासों तक साकार करके दिखला दी ।
૪૬૭
मुनि सागर विजय
आचार्य विजयसमुद्र सूरि के बड़े भाई का नाम श्री पुखराज जी था । इन्होंने भी आपके दीक्षा लेने के कुछ वर्ष बाद दीक्षा ली । नाम मुनि सागरविजय हुआ और श्राप के गुरुभाई बने । मुनि श्री का स्वर्गवास विजयसमुद्र सूरि के स्वर्गवास से बहुत वर्ष पहले हो गया था । श्राप बाल ब्रह्मचारी थे ।
आचार्य विजयेन्द्रदिन्न सूरि
गुजरात प्रदेशांतर्गत बड़ौदा जिले में बोडेली के निकट सालपुरा गाँव में परमार क्षत्रिय रणछोड़ माई गोपालसिंह के परिवार में वि० सं० १९८० कार्तिक वदि १ को माता बालू बहन की कुक्षी से मोहनभाई का जन्म हुआ । बारह वर्ष की आयु में मोहनभाई के माता-पिता का देहांत हो गया । चाचा ने पालन-पोषण किया और पढ़ाया। स्कूल की शिक्षा के साथ जैनधार्मिक पुस्तकों का भी अभ्यास किया । वि० सं १९६८ फाल्गुन शुक्ला ५ को १८ वर्ष की आयु में मोहनभाई ने नरसंडा गाँव में प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के पौत्र शिष्य मुनि विनयविजय जी से दीक्षा ग्रहण की और आपका नाम इन्द्रविजय रखा गया । आपकी बड़ी दीक्षा बिजोम्रा नगर में प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य प्राचार्य श्री विजयविकाशचन्द्र सूरि जी द्वारा हुई ।
आपने आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी की सेवा में लगातार छह वर्ष रहकर जैनागमों, न्याय, व्याकरण, काव्य-साहित्य यादि नाना विषयों का प्राकृत संस्कृत-गुजराती आदि भाषाओं में अभ्यास किया ।
प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि का बम्बई में वि० सं० २०११ में स्वर्गवास हो गया । पश्चात् राष्ट्रसंत, जिनशासन रत्न शांतमूर्ति आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी के साथ रहे । वि० सं० २०११ चैत्र वदि ३ को आपकी सूरत में गणि पदवी हुई। उसी समय मुनि जनकविजय जी व मुनि निपुनविजय जी को भी गणि पदवी मिली । मूनि कनकविजय जी को आचार्य पदवी दी गयी। बाद में आपने प्राचार्यं विजयसमुद्र सूरि से उपसंपदा ग्रहण की और उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया ।
प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी की आज्ञा से आप बोडेली क्षेत्र में पधारे। इस क्षेत्र में ५ वर्षों में प्रापने लगभग ५००० परमार क्षत्रियों को जैनधर्मी बनाया । ये सब लोग कबीर पंथी थे। इनमें से कई श्रावक-श्राविकानों ने भागवती दीक्षाएं भी ग्रहण की हैं।
वि० सं० २०१८ में आप आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि के साथ पंजाब पधारे । वि० सं० २०१६ का चतुर्मास श्रापने प्राचार्य श्री के साथ दिल्ली में किया । चौमासे के बाद आप पुनः बोडेली पधारे और वहाँ के नये जैन परमार क्षत्रियी को दृढ़ संस्कारी बनाया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org