________________
४६६
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
(१२) करूणानिधान प्राचार्य देव "यथा नाम तथा गुणः" की उक्ति के मूर्तरूप थे; क्षमाशीलता, समता, सहनशीलता, कर्तव्य पारायणता, निराभिमानता, निश्छलता की प्रत्यक्ष मूर्ति थे । अापके चरणों में पहुंचा हुआ कोई भी व्यक्ति कभी निराश नहीं लौटा।
(१३) गुरुवल्लभ को अन्तिम भावना 'समुद्र ! पंजाब अब तुम्हारे सहारे हैं, इस की सारसंभाल भले प्रकार से करना । गुरुदेव की इन भावनाओं को मूर्तरूप देने केलिए आप ने अपने जीवन की बाज़ी लगा दी। पंजाब के प्रत्येक नगर में प्राप ने विचरण किया जहां एक भी श्रावक का घर था वहां भी पधारे।
(१४) चारों संप्रदायों (श्वेतांबर, दिगम्बर, स्थान कमार्गी, तेरापंथ) द्वारा सभी प्रकार के मतभेद भुला कर प्राप के नेतृत्व में भगवान महावीर का २५ वां निर्वाण शताब्दी महोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर मनाना मात्र जैन-इतिहास के पृष्ठों पर ही नहीं अपितु भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जावेगा। इस अवसर पर शासन प्रभावना के जो कार्य सारे देश में रचनात्मक हुए वे भी इतिहास के पृष्ठों पर सदा अमर रहेंगे ।
(१५) स्वर्गस्थ प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी की यह उत्कट अभिलाषा थी कि चार-पांच पंजाबी युवक नरवीर मेरे संघाड़े में दीक्षित हों जो मेरे बाद पंजाब की धर्मवाड़ी को हरा-भरा रख सकें जिससे सद्धर्मसंरक्षक मुनि श्री बुद्धिविजय (बूटेराय) जी तथा गुरु आतम की धर्मरक्षा की भावना सदा पल्लवित होती रहे । यह अभिलाषा उनके जीवनकाल में पूरी न हो सकी। परन्तु पाप श्री ने लाला चिमनलाल जी नौलखा तथा उनके तीन बच्चों को, और लाला लालचन्द जी दुग्गड़ एवं उनके सुपुत्र को दीक्षाएं देकर गुरुदेव की अभिलाषा को पूर्ण किया । यद्यपि लाला चिमललाल जी के पुत्रों की अल्पायु होने से दीक्षा देने के लिए समाज के कुछ लोगों ने विरोध भी किया था, किन्तु आप मेरुवत दृढ़संकल्प रहे और दीक्षा देकर पंजाबकेसरी की भावना को मूर्तरूप दिया । इस समय इन मुनियों की युवावस्था है और पंजाब की सार-सभाल के लिए उन्हें तैयार किया जा रहा है। इन के नाम हैं .. १. मुनि श्री जयानन्द विजय जी, २. मुनि श्री धर्मधुरेन्द्र विजय जी, २. मुनि श्री नित्यानन्द विजय जी, ४. मुनि श्री जयशेखर विजय जी । ५. मुनि श्री यशोभद्र विजय जी ये पांचों युवक मुनि बड़े होनहार हैं तथा ज्ञान-चारित्र सम्पन्न बनकर पंजाब के प्राण बन सकें, इसके लिए प्राचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि पूरी-पूरी कोशिश कर रहें हैं।
(१६) पंजाब सरकार ने पंजाब के स्कूलों में विद्यार्थियों को खाने के लिए अण्डा योजना बनाई। इस योजना में सरकार की तरफ से बच्चों के खाने केलिए बिना मूल्य अण्डे वितरण करने का निर्णय किया । आपने पूरी दृढ़तापूर्वक इस योजना को समाप्त करने के लिए आन्दोलन किया और सरकार को यह योजना वापिस लेनी पड़ी।
(१७) आप हाथ के कते-बुने सूत के वस्त्र धारण करते थे। पाप सचमुच गुणों के प्रशांत समुद्र थे। सांप्रदायिक कट्टरता से कोसों दूर थे । बेसहारों के सहारा थे। शरणागत के सच्चे संरक्षक थे । आप 'भाग्यशाली' कहकर सबको संबोधन करते थे । पंजाब में आने के बाद माप अन्तिम
।. देखें-आदर्श जीवन दुसरी आवृत्ति पृ० ५३४- "मुझे तो पांच-दस पंजाबी युवकों की जरूरत है। पंजाब की
मेरी चिता और जिम्मेदारी केलिये कोई चाहिये न । पन्त में उन्हें ही अपने देश पंजाब की रक्षा करनी होगी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org