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आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि
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परिणाम स्वरूप महोत्सव बड़ी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ । इस प्रकार प्राप राष्ट्रसंत के रूप में प्रख्यात हुए।
१०. जिनशासन रत्न पदवी वि० सं० २०३१ का चतुर्मास आपने मुनि मंडल के साथ श्री आत्मवल्लभ जैनभवन रूपनगर दिल्ली में किया। इसी चतुर्मास में उत्तर भारत के श्री महावीर जैन युवकसंघ के तत्त्वावधान में आपके ८४ वें जन्म दिवस पर (ता० २५ दिसम्बर १६७४ ई० को) दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रांगण में महोत्सव मनाने का विशाल प्रायोजन किया गया। सारे उत्तरभारत के युवक तथा चारों (श्वेतांबर, दिगम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी) समाजों के गण्य मान्य व्यक्ति इसमें सम्मिलित हुए।
दिगम्बर समाज के सुप्रसिद्ध मुनि उपाध्याय (एलाचार्य) विद्यानन्द जी, विश्वधर्म-संगम के प्रणेता मुनि सुशीलकुमार जी स्थानकवासी, तेरापंथी मुनि राकेशकुमार जी, श्वेतांबर मुनि गणि जनक विजयजी, विदूषी साध्वी श्री मृगावती जी, जैन कोकिला साध्वी श्री विचक्षणश्री जी, स्थानकवासी साध्वी श्री प्रीतिसुधा जी इत्यादि अपने-अपने साधु-साध्वियों सहित इस अवसर पर गुरुदेव आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी को शुभ कामनाएं देने के लिये विशेष रूप से पधारे ।
भारत सरकार के संचार मंत्री श्री इन्द्रकुमार गुजराल ने सभी युवकों को धर्म, समाज व राष्ट्र के प्रति निष्ठा व कर्तव्यों की शपथ दिलाई। उन्होंने ही जयनादों के मध्य गुरुदेव को 'जिन-शासन-रत्न' की पदवी की चादर प्रौढ़ाई । एक अन्य केन्द्रीय मन्त्री जगन्नाथ पहाड़िया तथा दिल्ली के मेयर श्री केदारनाथ साहनी ने गुरुदेव को इस युग का महान जैनाचार्य बतलाते हुए उन के शांतस्वभाव, समन्वय दृष्टि, राष्ट्र प्रेम एकता भाव व निष्ठा की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
___ मौन एकादशी का दिन इतना महान था कि इसी दिन ईसाइयों का क्रिसमिस पर्व तथा मुसलमानों की ईद का पर्व था । आप के इस पदवी प्रदान के अवसर पर । युवकों द्वारा एकत्रित चौरासी हजार रुपये की धनराशी दिल्ली के निकट बनने वाले गुरु वल्लभ स्मारक के अन्तर्गत सदुपयोग हेतु श्री जैन श्वेतांबर संघ को भेंट की गई।
पदवी के लिए विचाराधीन नामों में "जिन-शासन-रत्न" नाम पंडित प्रवर श्री हीरा लाल जी साहब दुग्गड़ शास्त्री द्वारा सुझाया गया था। जो सर्वसम्मति से निर्णीत किया गया । युवकसंघ के तत्कालीन प्रधान श्री निर्मलकुमार मुन्हानी अंबाला, उपप्रधान श्री सुशील कुमार दूगड़ आगरा, महामन्त्री श्री महेन्द्र कुमार मस्त सामाना थे।
(११) यद्यपि प्राप एक विशेष जैनपरम्परा के धर्माचार्य थे तो भी आप श्री को राष्ट्र के प्रति प्रापार प्रेम था । १. भारत-चीन के युद्ध के अवसर पर मापने घोषणा की थी कि मैं पीड़ित भाइयों केलिए अपना रक्त देने केलिए तैयार हुँ। यदि कोई क्षुद्र देवता विश्वशांति केलिए और युद्ध समाप्ति के लिए किसी मनुष्य की बलि चाहता हो तो सबसे पहले मैं अपनी बलि देने के लिए तैयार हूं । २. मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक युद्ध बन्द न होगा तब तक मैं बैंड-बाजों आदि प्रदर्शन रूप सामग्री के साथ किसी भी गांव या नगर से प्रवेश न करूंगा । ३. सब तक खांड, मिश्री, गुड़ आदि मीठे पदार्थों से बने हुए किसी भी प्रकार के मिष्टान्न का खाने में प्रयोग नहीं करूंगा। चावलों का भी त्याग करता हूं।"
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