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________________ ४८४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म "यह शरीर कमज़ोर है, तुम्हारी यहाँ जरूरत है" छः साधनों के साथ आपने बम्बई की तरफ़ तुरंत विहार कर दिया और लम्बा विहार करके थोड़े ही दिनों में गुरुदेव के पास प्रा पहुँचे। पाते ही गुरुदेव की वैयावच्च में लग गये । बाकी के चार साधुनों --मुनि विचारविजय जी, मुनि प्रकाशविजय जी, मुनि बसन्तविजय जी, मुनि नन्दनविजय जी ने पंजाब की अोर विहार कर दिया। गुरुदेव के अंतिम श्वासों तक वि० सं० २०११ तक आप गुरुदेव की सेवा में ही रहे । ५. बम्बई में गुरुदेव के स्वर्गवास हो जाने के बाद आपने मुनि मंडल के साथ पंजाब की तरफ़ प्रस्थान कर दिया। गुरुदेव के बाद उनके पट्टधर के रूप में अब आपका स्वतंत्र कार्य क्षेत्र प्रारंभ होता है । गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ, राजस्थान होते हुए प्राप वि० सं० २०१६ में जेठ सुदि ७ को प्रागरा नगर पधारे। यहाँ चतुर्मास करने के बाद आपने पंजाब की तरफ विहार किया। ६. बम्बई से विहार करने के बाद वि० सं० २०१४ को नाडोल (राजस्थान) में मुनि दर्शनविजय जी (त्रिपुटी) के शिष्य मुनि वल्लभदत्तविजय ने आप से उपसंपदा ग्रहण कर आपका शिष्य कहलाने का गौरव प्राप्त किया। रास्ते में अनेक मंदिरों की प्रतिष्ठाएं शिक्षणसंस्थानों की स्थापनायें, साधु साध्वियों की दीक्षाएं आदि शासनप्रभावना के अनेक कार्य किये । ७. वि० सं० २०१६ के आगरा के चौमासे में रोशन मुहल्ला के उपाश्रय में आपके आदेश से आप की निश्रा में श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब के भूतपूर्व विद्यार्थियों का सम्मेलन हुआ । प्रधान प्रो० पृथ्वीराज जी तथा मंत्री श्री हीरालाल जी दुग्गड़ थे। ८. वि० सं० २०१७ चैत्र सुदि १ के दिन प्रापका मुनिमंडल के साथ लुधियाना पंजाब में प्रवेश हुमा । आठ वर्ष पंजाब में विचर कर वि० सं० २०२५ में पुन: गुजरात की तरफ़ विहार कर गये प्रोर वि० सं० २०२६ जेठ सुदि ८ को पाप भायखला बम्बई में पधारे । अापका चतुर्मास इस वर्ष गौड़ी जी के उपाश्रय पायधूनी बम्बई में हुआ । ६. वि० सं० २०२७ मार्गशीर्ष वदि द्वादशी त्रयोदशी, चतुर्दशी (ता. २५, २६, २७ दिसंबर १९७० ईस्वी) को बम्बई में कलिकाल-कल्पतरु, अज्ञान-तिमिर-तरणि, पंजाबकेसरी, भारत-दिवाकर प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी की जन्म शताब्दी भारी समारोह पूर्वक मनाकर और अनेकानेक धर्म प्रभावना के कार्य करते हए बम्बई से पूना, इन्दौर आदि होते हुए दिनांक ३० जून सन् १९७४ ईस्वी को आप श्री मुनिमडल सहित अखिल भारतवर्षीय श्री महावीर स्वामी २५सौवीं निर्वाण महोत्सव समिति के निमंत्रण पर दिल्ली पधारे। सरकार द्वारा गठित "अखिल भारतवर्षीय भगवान महावीर २५००वीं निर्वाण महोत्सव समिति के सदस्य नियुक्त होने वाले आप एकमात्र जैन (श्वेतांबर मूर्तिपूजक) प्राचार्य थे। इस निर्वाण महोत्सव की दिल्ली प्रदेश समिति ने आपश्री का राष्ट्रीय सम्मान करने के लिये ऐतिहासिक स्वागत किया। लगभग १० किलोमीटर लम्बे जलूस के साथ आप श्री का बड़ी धूमधाम से नगरप्रवेश कराया गया। अखिल भारतवर्षीय श्री महावीर स्वामी पच्चीस सौवीं निर्वाण महोत्सव समिति के अखिल भारतीय स्तर पर इस महोत्सव को मनाने में प्रापने पूरा-पूरा सहयोग तथा मार्गदर्शन दिया। जिससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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