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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म करण नहीं है । इसलिये प्राचीन भारतवर्ष के तत्त्वज्ञान का तथा धर्मपद्धति का अध्ययन करने बालों के लिए बड़े महत्त्व की वस्तु है । यह बात भी सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक हैं । जैन अनुश्रुति श्री ऋषभदेव को जैनधर्म का संस्थापक पूर्ण रूप में मानती है ।
(४) श्री कन्नूमल एम० ए० जज ( न्यायधीश ) का मत है कि
जैनधर्म एक ऐसा प्राचीन धर्म है कि जिसकी उत्पत्ति और इतिहास के प्रारम्भ का पता लगाना एक दुर्लभ बात है ।" तथा मनुष्यों की तरक्की के लिए जैनधर्म का चरित्र बहुत लाभकारी है । यह धर्म बहुत ही असल, स्वतंत्र, सादा, बहुत मूल्यवान एवं ब्राह्मणों के मतों से भिन्न है और बुद्ध के समान नास्तिक नहीं है ।
(५) मेजर जनरल फ़ारलांग का मत है कि
It is impossible to find a beginning for Jainism thus appears an earliest faith of India.3
अर्थात् जैन धर्म का प्रारम्भ काल पाना असंभव है । जैनधर्म भारत का सबसे पुराना धर्म मालूम होता है ।
(६) डा० सतीशचन्द्र विद्याभूषण, एम० ए० पी-एच० डी० एफ० आई० आर० एस० का मत है कि
जैनधर्म तत्र से प्रचलित हुआ है, जब से संसार की सृष्टि का प्रारम्भ ।
(७) राष्ट्रनेता लोकमान्य तिलक का मत है कि
ग्रंथों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाता जाता है कि जैनधर्म अनादि है । यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है । सुतरां इस विषय में इतिहास के दृढ़ प्रमाण हैं ।
(८) डा० विशुद्धानन्द पाठक का मत है कि
विद्वानों का अभिमत है कि यह जैनधर्म प्रागैतिहासिक और प्राग्वैदिक है | सिंधुघाटी की सभ्यता से मिली योगमुद्रा वाली मूर्ति तथा ऋग्वेद के कतिपय मंत्रों से ऋषभ तथा प्ररिष्टनेमि जैसे तीर्थंकरों के नाम इस विचार के मुख्य आधार हैं। भागवत और विष्णुपुराण में मिलने वाली जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की कथा भी जैनधर्म की प्राचीनता को व्यक्त करती है ।
(e) रायबहादुर पूर्णेन्दु नारायण सिंह एम० ए० का मत है कि -
जैनधर्म व्यवहारिक योगाभ्यास के लिए सब से प्राचीन है, यह वेद के रीति-रिवाजों से पृथक हैं । इसमें हिन्दू (वेद) धर्म के पूर्व की प्रात्मिक स्वतंत्रता विद्यमान है । जिसको परमपुरुष ( तीर्थंकर) प्रकाश में लाये हैं ।
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(१०) न्यायमूर्ति रांगनेकर का मत है कि
कि ऐतिहासिक शोध से यह निःसंदेह प्रकट हुआ है कि यथार्थ में ब्राह्मण (वैदिक) धर्म के सद्भाव अथवा उसके हिन्दूधर्म में परिवर्तित होने के बहुत पहले से जैनधर्म इस देश में विद्यमान था ।
1. थिप्रोसी फिस्ट अंक दिसम्बर जनबरी
2. ता० २.१२.१९११ के पत्र ।
3. Studies in Science of comparative Religion p. p. 13-15
4. भारतीय इतिहास और संस्कृति पृष्ठ १९९-२००
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