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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
जीवन को आत्मानन्द प्राप्त करने का साधन मानने लगा । मानो आत्मानन्द एक उत्सव के रूप में मेरे हृदय और आँखों में समा गया ।
जब मैं पूरी तरह से होश में आ गया तब मैंने अनुभव किया कि मेरा सारा जीवन ही बदल गया है । साँप जैसे अपनी काँचली उतार फेंकता है वैसे ही मेरे आत्मारूपी सर्प ने अज्ञानरूपी काँचली को उतार फेंका। वह दिन मेरे लिये एक पर्व का दिन हो गया । जैसे कि मुझे किसी ने अमृत पिलाया हो । उसी तरह मेरा हृदय आनंदित हो उठा। इस अमृत को पिलाने वाले पुण्य श्लोक के दर्शन करने को और उनकी चरणरज से अपनी आत्मा को पवित्र बनाने केलिये मेरा हृदय व्याकुल हो उठा ।
जिन के पुण्यबल, तपोबल, योगशक्ति के सामर्थ्य ने मुझे जीवनदान दिया था । जिन्होंने मेरे मुर्दा शरीर में चेतनता प्रदान की थी एवं नई ज़िंदगी तथा नई दृष्टि भेंट की थी । आज उन्होंने मेरे संगीत द्वारा प्रदर्शित कृत्रिम भावों को भक्ति रस से भर दिया। उन प्रतापी पुरुष का नाम है प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर जी ।" मैं ने जाकर उन सौम्य, गंभीर और शांत गुरुदेव के चरणों में प्रणिपात किया । उन की चरणरज बड़ी श्रद्धा से अपने मस्तक पर चढ़ाई और अपने जीवन को धन्य माना ।
८. इसी प्रकार आप ने अनेकों को संकट मुक्त किया। जिन पर ऐसे-ऐसे संकट आये कि उन्हें आजीवन कारावास हो जाता पर आप श्री के वासक्षेप के प्रभाव से अदालत स एकदम निर्दोष सिद्ध होकर हर्षपूर्वक घर लौटे ।
६. वि० सं० २००४ तदनुसार अगस्त १९४७ ई० को ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्र करते हुए उसके दो टुकड़े कर दिये । ( १ ) पाकिस्तान और (२) भारत बन जाने पर गुजरांवाला पाकिस्तान में चला गया । उस समय पाकिस्तान में मुसलमानों ने गुंडागिर्दी मचा दी । उन में मानवता समाप्त हो चुकी थी और दानवता का तांडव नाच होने लगा था । हज़ारों हिन्दू-सिक्ख अबलानों पर अत्याचार हुए, मर्दों और बच्चों की हत्याए कर डालीं हजारों मानवों के ख ून से होली खेली गई । मकानों, दुकानों को लूट लिया गया, अनेक जला कर खाक कर दिय गये । अनेकों को जबरन मुसलमान बना लिया गया फिर भी उन कइयों की हत्याएं करके उन की चल-अचल सम्पत्ति को हथिया लिया । उस समय आप सात साधुओं के साथ तथा जैनसाध्वी प्रवर्तनी श्री देवश्री जी १४ शिष्याओं के साथ गुजरांवाला में ही चतुर्मास विराजमान थे । इतने भारी विप्लव होने पर भी यहां के जन समाज तथा साधु-साध्वी सघ का सर्वथा सुरक्षित रूप से वहाँ पयूषण पर्व का मनाना, तत्पश्चात् प्राप की सरक्षता में सही सलामत भारत मं पहुचाना, यह असाधारण घटना थी । यदि इसे आप का ही चमत्कार माना जाय तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी ।
आप के साथ सात साधु, १४ साध्वियाँ तथा संकड़ों श्रावक-श्राविका परिवार गुजरांवाला से भारत पहुचे |
उस समय की गुजरांवाला की परिस्थिति तथा आप की दृढ़ता का परिचय कराने वाले
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