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________________ ४७४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म मंदिर न हो वहाँ मंदिर निर्माण के लिये फंड एकत्रित हो जाता था। शिक्षण संस्था न हो वहाँ शिक्षण संस्था की तैयारी हो जाती थी। अज्ञान हो तो इस अंधकार को मिटाने के लिये ज्ञान प्रचार की व्यवस्था बन जाती थी। दुखियों को दुःखमुक्त कराने के लिये फंड की योजना बनती। जहाँ कुसंप होता वहां संप हो जाता। जहाँ अापका विहार होता वहाँ एक नये प्रकार की चेतना मा जाती। जैनों में धर्म भावनाएं जाग्रत होतीं और बढ़तीं। जो कोई भी अन्यधर्मी आपसे मिलता उसके विचारों में भी धर्म भावनाए जागृत हो जाती और धर्म के कार्यों में सहयोगी बन जाता। वह व्यसनों से निवृत होने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेता । इस प्रकार आपने मानव जीवन के उत्कर्ष के लिये अनेकों के दिलों को स्वच्छ बनाया । आप श्री के जीवन में अनेक घटनाए ऐसी घटी हैं कि जिन्हें चमत्कार माने तो अनुचित न होगा। चाहे जितना भी बड़ा कार्य क्यों न होता वह आप (पुण्यशाली महात्मा) की हाजरी में तुरन्त निर्विघ्नता पूर्वक सम्पन्न हो जाता था। हजारों-लाखों मानवों की मेदिनी एकत्रित हुई हो उसमें से एक को भी आँच न पावे, अनिष्ट न हो, प्रशुभ न हो ऐसा पुण्यात्मा के प्रभाव से ही होता है। विघ्नलताएं नष्ट हो जाती हैं तथा मानव का मन प्रफुल्लित हो उठता है । पाप एक विरल विभूति थे। आपके जीवन में अनेक प्रसंग ऐसे भी आये जिन्हें चमत्कार मानें तो अनुचित न होगा। १-वि० सं० १९१२ में करचलिया गांव में प्रभु की प्रतिमा को नदी पार करके लाना था। इसके लिये पहले दो बार प्रयास भी किया गया था पर वे निष्फल हुए। आपने जो मुहूर्त निकाल कर दिया था, उसमें प्रभु निर्विघ्नता पूर्वक पधार गये। २भकोड़ा गांव में एक उत्सव चालू था। उस अवसर पर अनेक लोग बाहर से यहाँ आये हुए थे । मुनि श्री पुण्यविजयजी भी पधारे हुए थे। मुनिश्री पर अचानक किवाड़ गिर गया पर उन्हें किसी भी प्रकार की चोट न आई । प्राचार्यश्री भी यहां विराजमान थे। ३-जूनागढ़ में प्राचार्यश्री प्रवचन कर रहे थे। श्रोतामों से उपाश्रय का हाल खचाखच भरा हुआ था । उपाश्रय की बारी में से एक बच्ची गिर गई। श्रोताओं में हाहाकार मच गई किंतु बालिका को किसी प्रकार की चोट न आई पौर वह बाल-बाल बच गई। ४-पसरूर नगर-जहाँ पुण्यशाली के चरण पड़ते हैं वहाँ दुष्काल भी सुकाल हो जाता है। सूखी धरती भी हरी भरी हो जाती है। वातावरण में नये प्रकार की स्फूति आ जाती है, धरती पावन हो जाती है । यदि नदी, नाला, द्रह, कुआ सूख गया हो तो वह स्वच्छ जल से भर जाता है। पुण्यशाली के प्रभाव से एक अथवा दूसरी प्रकार से जनता जनार्दन को लाभ होता है। जब आपके पवित्र चरण पसरूर नगर में पड़े तब वहाँ जो कई वर्षों से कुपा सूख चुका था उस में निर्मलमीठा-स्वादिष्ट पानी आगया । इस प्रकार धरती ने भी पुण्यशाली महात्मा का स्वागत किया। ५. गुजरांवाला-में एक बार वर्षा ऋतु आने पर भी वर्षा न हुई। दुष्काल पड़ने की संभावना से लोगों के मन में चिंता होने लगी। आप को पता लगा पाप ने सब से तप करवाया। तप के प्रभाब से तुरंत वर्षा हुई। लोगों ने शांति की सांस ली। ६. होशियारपुर-आप विराजमान थे तब अचानक ही उपद्रव का तांडवनाच होने लगा । गुण्डे उपाश्रय को प्राग लगाने की घात में ही थे कि उसी समय पुलीस मागई और गुडे भाग निकले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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