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आचार्य विजयवल्लभ सूरि
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के जैन विद्यार्थियों को छात्र वृत्तियां तथा निर्व्याज ऋण (loan) दिलाने की व्यवस्था की। जिसके परिणाम स्वरूप आजतक जैन समाज के साधन हीन विद्यार्थी हजारों की संख्या मे डाक्टरी, इन्जीनियरी, वकालत, कामर्स आदि उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल हुए है । इस संस्था से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी भारत तथा विदेशों में उच्च पदों पर आसीन होकर गौरव पूर्ण सुखी पारिवारिक जीवन पाने के सौभागी बने हैं।
(२) मध्यमवर्ग के अनेक साधनहीन विद्यार्थियों को प्रार्थिक सहायता दिलाकर उन्हें उच्च शिक्षण प्राप्त करने में सहयोग दिलाया। पंजाब में जैन सरस्वती मंदिर स्थापित करने के लिए जो पाईफंड के नाम से घन राशी एकत्रित की गयी थी उस राशी से लगभग तीस हजार रुपया खर्च कराकर पं० सुखलाल संध्वी तथा पं० बृजलाज ब्राह्मण को उच्च शिक्षा दिखलाई ।
इसी प्रकार व्यक्तिगत सहायता पानेवाले हजारों की संख्या में जैन-जनेतर विद्यार्थी भी आज भारत तथा अमरीका आदि विदेशों में उच्च पदों पर काम कर रहे हैं ।
३. सिंध, पंजाब, बंगाल के विभाजन के बाद पाकिस्तान से उजड़कर पाये हुए लोगों को गुप्तरूप से सब प्रकार की मदद दिलाने में भी अपने कोई कमी नहीं रखी।
४. आप श्री की शरण में जो कोई पाया व खाली हाथ न लौटा । सिसि कियाँ लेता पाया 'और हंसता हुआ लौटा । इसी कारण से आपश्री को जनता ने कलिकाल कल्पतरु माना और इस पदवी से विभूषित कर अपने आप को धन्य माना ।
प्रभावशाली प्राचार्य - विज्ञान के युग में सामान्य मानव का मन चमत्कार मानने को तैयार नहीं होता । पर जब प्रत्यक्ष वस्तु बनती है तब उस वस्तु को एक अथवा दूसरी प्रकार से स्वीकार ही करना पड़ता है। असामान्य मनुष्य को सामान्य व्यक्ति के समान परखना नितांत अनुचित हैं । सामान्य व्यक्ति के लिए जो वस्तु अशक्य-असम्भव प्रतीत होती है वह असामान्य व्यक्ति केलिये सम्भव और स्वाभाविक है।
_असामान्य व्यक्ति अपनी संकल्प शक्ति, निर्णय शक्ति द्वारा ही कार्य सिद्ध कर लेता है। इस व्यक्ति के कर्म इस प्रकार के होते हैं कि वह जहाँ-जहाँ जाता है वहां-वहां अनुकूल वातावरण हो जाता है । उस वातावरण से झगड़े-क्लेश सब शांत हो जाते हैं। जैनशास्त्रों में कहा है कि तीर्थंकर भगवान जिस प्रदेश में विचरते हैं अथवा देशना देते हैं वहाँ के उपद्रव नाश हो जाते हैं। हमारी संस्कृति के इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंगों का उल्लेख पाया जाता है कि महान आचार्यों ने अपनी प्रभावशाली शक्ति से समाज और देश के अनेक महान उपकार कारक कार्य किये, अनेक उपद्रवों को नाश किया और समय-समय पर अनेक स्थानों में शांति की स्थापना की।
आप भी पुण्यवान महापुरुष थे। जिस भूभाग को आप अपनी चरणरज से पावन करते थे उस क्षेत्र में समाजहित के कार्य होते रहते थे। वहाँ नवीन जागृति होती थी, धार्मिक क्षेत्र विस्तृत बनता था। आप बालब्रह्मचारी थे। जैन सिद्धान्तों पर अटल श्रद्धा रखते हुए उनका आचरण करते थे। पांच महाव्रतों के पालन के कारण आपके जीवन में एक प्रकार की सौरभ बहती थी। जिसके परिणाम स्वरूप जहाँ पाप जाते वहाँ का वातावरण प्रेममय-धर्ममय बन जाता था। जहां जैन
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