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________________ ४६८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म कि आपके साथ सब मुनि और साध्वी समुदाय को सुरक्षित रूप से अपने साथ भारत में ले आया जावे । पाकिस्तान बन जाने के बाद भी आपने धैर्य न छोड़ा, उस समय आपने उच्चतम त्याग और कुर्बानी का परिचय दिया । भारत स्थित आपके भक्तों ने कायदे प्राज़म मुहम्मदअली जिन्हा से प्रार्थना की कि उनके धर्मगुरुओं को सुरक्षित भारत पहुंचा दिया जावे । जिसका प्रबन्ध पाकिस्तान सरकार ने कर दिया। आप श्री ने केवल अपने लिए प्रबन्धों को एकदम ठुकरा दिया और घोषणा की कि मैं यहाँ के स्थानकवासी तथा श्वेतांबर दोनों जनसंघों को अपने साथ लेकर ही पाकिस्तान को छोड़कर भारत आऊँगा । जब तक ऐसा प्रबन्ध न होगा तब तक मैं यहाँ से एक कदम भी नहीं -उठाऊंगा यहाँ पर इन्हीं के साथ जीऊंगा, इन्हीं के साथ मरूँगा। पयूर्षण पर्व की आराधना करने कराने के बाद सरकार के प्रबन्ध से आप दोनों जैन संघों को साथ में लेकर तथा मुनिमंडल, साध्वी समुदाय के साथ सुरक्षित भारत में पहुंचे। गुजरांवाला से आप श्री सभी साधु साध्वियों व संघ के साथ लाहौर तक पाए । सीमापार करके अमृतसर पहुंचाने के प्रबंध करने में सरकार को कुछ दिन लगे थे। तभी लाहौर में ही प्रापको पता लगा कि तेरापंथी प्राचार्य श्री तुलसी के शिष्य मुनि अमोलक ऋषि यहाँ के ही एक दूरस्थ मुहल्ले में घिरे हुए बैठे हैं। पाप ने साथ के सिपाहियों व भाइयों को आज्ञा देकर उक्त मुनि को भी अपने साथ ले पाने का प्राग्रह किया। शहर में फिसाद-दंगा जोरों पर था। रावी नदी की ओर से अमोलक ऋषि जी के स्थान पर पहुंचा गया तथा उन को उस स्थान पर लाया गया जहां पर प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि जी संघ के साथ बिराजमान थे। उक्त मुनि श्री ने गुरुदेव के काफिले में ही देश की सीमा में प्रवेश किया और इकट्ठे ही अमृतसर पाए । पुनः अमृतसर के भाइयों को आप ने मुनि जी की सेवा सश्रुषा को कहा । (यह बात अमोलक ऋषि जी ने अपने ई० सं० १९७८ के सामाना चौमासा में स्वयं बतलाई थी) __ संगठन के अग्रदूत (१) बड़ौदा में मुनि सम्मेलन-वि० सं० १९६८ में न्यायांभोनिधि जैनाचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज के समुदाय का मुनि सम्मेलन आप के प्रयत्नों से हुआ। इस सम्मेलन के अध्यक्ष प्राचार्य श्री विजयकमल सूरि बने । उस में २४ प्रस्ताव पास किये गये। अध्यक्ष महोदय ने इस सम्मेलन की सफलता के लिये प्राप के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। (२) वि० सं० १९६० में अहमदाबाद में जैनश्वेतांबर सर्वगच्छीय मुनि सम्मेलन हुआ । उसे सफल बनाने के लिये पाप ने बहुत परिश्रम तथा अनथक सहयोग दिया। (३) अखिल भारतवर्षीय जैनश्वेतांबर कान्फरेन्स के अनेक सफल अधिवेशन आप श्री की निश्रा तथा सप्रेरणा से हुए । सादड़ी (राजस्थान) के अधिवेशन में आप ने सम्मेलन में भाग लेनेवालों को बहुत प्रोत्साहित किया। उन के हृदयों में कान्फरेन्स का महत्व बढ़ाया। उसीका यह परिणाम था कि फालना, जूनागढ़, बम्बई के अधिवेशन पूरी सफलता के साथ सम्पन्न हुए। प्रत्येक सम्मेलन को सफल बनाने में पाप श्री की प्राणदायिनी शक्ति ने बहुत बड़ा काम किया। (४) बामनवाड़ा (राजस्थान) में पोरवाड़ जैनसम्मेल में प्राप थी की ही प्रेरणा से बड़े. बड़े काम हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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