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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म जीवनकाल में हजारों कविताएं, छंद, स्तवन, भजन, पूजाए आदि की रचनाएं भी हिन्दी भाषा में की, जिनका अपना साहित्यिक स्थान तथा मूल्य है । शराबबन्दी आन्दोलन आपश्री ने शराब आदि मादक पदार्थों के सेवन के विरुद्ध भारत के कोने-कोने में प्रचार किया। पंडित मोतीलाल नेहरू ने आपसे भेंट की और पाप के उपदेश से प्रभावित होकर सिग्रेट पीना त्याग दिया । अनेकों भारतवासियों ने आपके उपदेश से अंडा, मांस, मदिरा आदि का त्याग कर पवित्र जीवन निर्वाह करने की प्रतिज्ञाएं की। गुजरात आदि प्रदेशों से पैदल विहार करते हुए अपने मुनिमंडल सहित ई० सं० १९४० में पाप पुनः गुजरांवाला पधारे । नगरवासी सब कौमें सामूहिक रूप से बड़ी धूमधाम से आपके नगर प्रवेश की तैयारियों में संलग्न थे। यहाँ के जैन श्रीसंघ ने इस महोत्सव में शामिल होने के लिए सब जगह निमंत्रण पत्रिकाएं भेजी थीं। उस समय अंबाला शहर में कांग्रेस द्वारा शराबबन्दी का आन्दोलन चालू था। तब वहाँ के नगर कांग्रेस कमेटी के प्रधान मियाँ अन्दुलगुफारखाँ ने गुजरांवाला में प्रवेश होने से पहले प्राचार्य श्री के नाम एक पोस्टकार्ड लिखा कि "पाप अंबाले के लोगों को आपके प्रवेशोत्सव पर आने के लिए मना करें।" इसका प्राचार्य श्री ने तार व पोस्टकार्ड से इस प्रकार उत्तर दिया-"तार में लिखा था कि १. वोटरों को रोको, गुजरांवाला में मत प्रावें।" पोस्टकार्ड में लिखा था कि २. "प्रापका पोस्टकार्ड मिला। प्राप जिस कार्य के लिए परिश्रम कर रहे हैं, वह बड़ा प्रशंसनीय है । इसके लिए मुझे बड़ी प्रसन्नता है । में भी आपके इस शुभ कार्य में सहयोगी हूं। मैं ने अंबाला के जैनी भाइयों को लिख दिया है कि आप लोग गुजरांवाला में मत प्रायें। शराब की दुर्गन्ध नगर से निकालने के लिये आप लोगों से जितना भी बन सके सहयोग देकर काम को सफल बनावें । आप उन्हें कह सकते हैं कि गुजराँवाला मत जावें और इस कार्य में पूरा सहयोग हैं। मेरे गुजरांवाला नगर प्रवेश के समय आप लोगों का शामिल होना इतना ज़रुरी नहीं हैं जितना कि शराब की लानत को शहर से हटाने में है । अतः आप लोगों के लिए शराबबन्दी कराने की सफलता में सहयोग देना मुख्य कर्तव्य है।" इसी प्राशय का एक तार व पोस्टकार्ड अंबाला के जैन श्रीसंघ के नाम संत राम मंगतराम की मारफ़त दिया था। राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ्तारी पर ऐसे अवसर पर आप बाजे-गाजे के साथ आडम्बर से नगर प्रवेश नहीं करते थे इस प्रकार सरकार द्वारा नेताओं की गिरफ्तारी पर शांत और मौन प्रतिकार करते थे। हरिजनों के लिए मेघवालों के लिए विश्राम गृहों की स्थापनाएं कराई। हरिजनों के मंदिर प्रवेश अान्दोके समाधान कराये । प्रापकी निश्रा में हरिजनों ने अट्ठाई आदि की तपस्याएं की। जैनों को उपदेश देकर उनकी सुख-सुविधाओं के लिए कुत्रों का निर्माण करवाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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