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आचार्य विजयवल्लभ सूरि
४६५ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय इस विश्वविद्यालय की स्थापना तथा उत्कर्ष के ये पाप पं० मदनमोहन मालवीय के साथ निकट सम्पर्क रखकर धन इकट्ठा करवाकर भेजते रहे। जनसमाज की धन राशि से इसमें जैनचेयर स्थापित करवाकर पंडित सुखलालली की नियुक्ति करवाई। जिसमें पढ़कर अनेक जैन स्कॉलर तैयार हुए । महामना मालवीय जब गुजरांवाला पंजाब में हिन्दू महासभा के अधिवेशन पर पधारे तब प्रधान पद से भाषण देते हुए आपने आचार्य श्री के लिये कहा था- "अाज हमारा हृदय प्रसन्नता से गद्गद् हो जाता है और गौरव से फूला नहीं समाता । जब कि आज के दूषित वातावरण में भी भारत में आप जैसे महात्यागी, तपस्वी, सच्चरित्रवान, एवं ज्ञानी जैनमुनि समूह विद्यमान है । सतत् पाद विहार करते हुए गाँव-गाँव नगर-नगर में निस्वार्थ भाव से देश के चारित्र निर्माण में आप जैसे महान् सहयोग प्रशंसनीय है । आप जैसे निष्परिग्रही, सच्चे त्यागियों और वैरागियों को पाकर मात्र जैनसमाज ही नहीं परन्तु सारा भारत उपकृत है। चिराग़ तले ढूंढने से भी जनसाधुनों के सिवाय अन्यत्र ऐसे परमत्यागी, नि:स्वार्थ संत दिखलाई नहीं देते । हम चाहते हैं कि भारत का साधु समाज फिर वह किसी भी मत-संप्रदाय का क्यों न हो आप जैसे संत पुरुषों के आदर्श को अपनाकर राष्ट्र के नैतिक बल को सुदृढ़ बनावें ।
स्वदेशी तथा खादी आप जीवन पर्यन्त शुद्ध खादी का उपयोग करते रहे, अपने शिष्य समुदाय को भी खादी के प्रयोग के लिये तैयार किया तथा जनता को भी इसके प्रयोग के लिये उपदेश देते रहे । आपको जब वि० सं० १९८१ में लाहौर में प्राचार्य पदवी हुई थी उस महान् अवसर पर भी पंडित श्री हीरालाल जी शर्मा ने अपने हाथों से सूत काता और कातते समय नवस्मरण का पाठ बराबर करते रहे । ऐसे सूत की बुनी चादर इस अवसर पर प्राचार्य श्री ने स्वीकार कर प्रसंग को भव्य बनाया।
हिन्दू मुस्लिम एकता आपके व्याख्यान में हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन और मुसलमान सब कौमों के लोग आते थे। हिन्दू, मुसलमानों की धार्मिक भावना भिन्न होते हुए भी प्रेम तथा पारस्परिक समन्वय से रहने का
आप सदा उपदेश देते थे। हिन्दुओं और जैनों के समान ही मुसलमान भी पूज्य भाव से प्रापको रहबर मानते थे। पालनपुर और मालेरकोटला के मुसलमान नवाब आपके विशेष श्रद्धालुओं में से थे।
बंगाल राहत फंड ई० सं० १९४२ में बंगाल में दुष्काल के समय आपने अनथक उपदेश देकर जैन समाज द्वारा बंगाल राहत फंड चालू करवाकर वहाँ धन राशी भिजवाई।
हिन्दी भाषा प्रचार गुजराती होते हुए भी आपने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया आप प्रवचन हिन्दी में ही करते थे और जितनी भी रचनाएं की हैं वे सब हिन्दी भाषा में ही की हैं। आपने अपने
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