SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म श्री विजयवल्लभ सूरि जी की उपस्थिति में हजारों मानवों की मेदनी के समक्ष प्रधानपद से बंबई के भूतपूर्व नगरपति श्रीमान् गणपति शंकर देसाई ने गौरवपूर्ण उच्चारण किये थे। “सरदार वल्लभभाई ने पटेल (किसान) जाति में जन्म लेकर राष्ट्रक्षेत्र में प्रवेश करके अग्रगण्य भाग लिया और ब्रिटिश सरकार की गुलामी से देश को स्वतंत्रता दिलाई। मात्र इतना ही नहीं परन्तु रजवाड़ों द्वारा विभाजित देश को राजाओं के चंगुल से मुक्त कराकर सारे भारतवर्ष को अखंड बना दिया। जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने वैश्य जाति में जन्म लिया ओर जैन मुनि की दीक्षा लेकर धर्मक्षेत्र में प्रवेश किया। देश में फैली हुई अनैतिकता, कुरूढ़ियाँ, प्रज्ञानांधकार, नास्तिकता तथा मांस मदिरा प्रादि अभक्ष्य तथा कुव्यसनों की घृणित दासता से मुक्त कराने के लिये आध्यात्मिक क्रांति को जागृत कर भारत माँ के लाडलों के नैतिक पतन के विरुद्ध जिहाद किया। राष्ट्रभावना और नैतिक उत्थान के उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही आपने आदर्श राष्ट्रसंस्था श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब की गुजरांवाला में स्थापना की थी। देश की स्वतंत्रता को कायम रखने के लिये दो शक्तियों की आवश्यकता रहती है। शारीरिक तथा नैतिक बल । बाहर के शत्रुओं तथा देश में अन्दर रहे हुए देश द्रोहियों और गुण्डों से रक्षा के लिये सुदढ़ राजनीति और सुदृढ़ सेना बल की आवश्यकता रहती है । एवं देश में प्रजा में पारस्परिक मैत्री, शांति, करुणा, प्रमोद तथा मध्यस्थता प्रादि प्राप्ति के लिये, प्रज्ञानांधकार, कुरूढ़ियों, नास्तिकता, द्वेष, वैर-विरोध, अनैतिकता प्रादि समाज व राष्ट्र को अन्दरूनी बुराइयों से निजात दिलाने के लिये प्राध्यात्मिक बल तथा उपदेश की आवश्यकता रहती है। एक शक्ति के बिना दूसरी शक्ति अपंग है अर्थात् ये दोनों शक्तियाँ एक दूसरे की पूरक हैं। दोनों शक्तियों को प्राचरण में लाने वाले राज्यकर्ता, राज्यनेता, राज्य कर्मचारी, प्रजा हो देश को समृद्ध बना सकते हैं और उस सशक्त, सुदृढ़ तथा स्थाई स्वतंत्र बनाने में सहयोगी बन सकते हैं। स्वार्थी, अनैतिक, कुचरित्रवान, दुष्ट, अत्याचारी, घूसखोर राज्याधिकारी देश को कलंकित करने का कारण बनते हैं जिससे राष्ट. शक्ति का ह्रास होकर स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है। जिस देश में दोनों शक्तियों में से किसी एक का अथवा दोनों का जब-जब ह्रास हुआ तब-तब उस देश का पतन हुआ। कर्मभूमि के आदिकाल में तीर्थंकर (अहत) श्री ऋषभदेव ने प्रजा को प्राध्यात्मिकता का अमृतपान कराया और देश की सुदृढ़ रक्षा के लिये उन्हीं के सुपुत्र चक्रवर्ती भरत अपनी कुशल राजनीति तथा सुदृढ़ चतुरंगिनी सेना द्वारा देश को स्वतंत्र रखने में सफल रहे। उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये इस युग में धर्मनेता, सहृदय प्राचार्य श्री विजयवल्लभसूरि ने प्राध्यात्मिक और नैतिक सहयोग से तथा लोहपुरुष राष्ट्र नेता वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता प्राप्त कर सहयोग दिया और स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात् उसे सुदृढ़ और चिरस्थाई बनाये रखने के लिये देश की सेना को सुदृढ़ किया। इस प्रकार इन दोनों महान नेताओं ने एक दूसरे के कार्य की पूर्ति करके देश के सच्चे सपूतों के रूप में प्रख्याति पायी।" आन्दोलन खिलाफत गांधीजी द्वारा चलाये गये इस अान्दोलन का आपने भरपूर समर्थन किया। आन्दोलन के पक्ष में पब्लिक ओपीनियन पैदा की। कांग्रेस कमेटी तथा खिलाफ़त कमेटी को आपने अनेक बार ग़रीब, गुरबों को कपड़ा और खाना बाँटने के लिये जैनसमाज की तरफ़ से आपके सिरवारने का रुपया दान में दिलाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy