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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म ( ४ ) ईसा की ७ वीं शताब्दी में बौद्धधर्मानुयायी चीनी यात्री हुएनसांग भारत भ्रमण करता हुआ सिंहपुर में श्राया । [ एलेगजेण्डर कनिंगम इस परिणाम पर पहुंचा है कि यह स्थान आजकल कटास अथवा कटाक्ष जो पंजाब में जेहलम जिले में है और जेहलम नदी के किनारे पर स्थित है] वह उसके वर्णन में लिखता है कि यहाँ अशोक राजा के स्तूप के पास एक स्थान है, जहाँ श्वेत-पटधारी पाखंडियों के प्रादि उपदेष्टा ने बोधि प्राप्त की थी। इस घटना का सूचक यहां एक शिलालेख भी है । पास ही एक देवमंदिर भी है। जो लोग वहाँ दर्शनार्थ जाते हैं वे घोर तपस्या करते हैं और अपने धर्म में सदा अप्रमत रहते हैं । उनके चरित्र अपने-अपने दर्जे के अनुसार ही होते हैं बड़ों को भिक्षु तथा छोटों को श्रामणेतर कहते हैं | 2 यात्री ने जिन श्वेतपटधारियों तथा देवमंदिर का उल्लेख किया है । वे श्वेतांबर जैन श्रमण-श्रावक तथा उनके द्वारा स्थापित १३ वे तीर्थंकर श्री विमलनाथ एवं बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि आदि के मंदिर थे । इसकी पुष्टि श्री जिनप्रभ सूरि के निम्नलिखित उल्लेख से होती है । ३३ "श्री सिंहपुरे लिंगाभिधः श्री नेमिनाथ: ॥ " "श्री सिंहपुरे च विमलनाथः ॥ " 3 अर्थात् — सिंहपुर में लिंगभिधः श्री नेमिनाथ तथा श्री विमलनाथ का महातीर्थ है । "संहपुरे पाताल लिंगाभिधः श्री नेमिनाथ: । "4 अर्थात् - सिंहपुर में लिंगाभिधः श्री नेमिनाथ का महातीर्थ है । उपर्युक्त उल्लेखों से स्पष्ट है कि इस महातीर्थ में अनेक जैन मंदिर होने चाहियें और इसके समीप हुएनसांग ने जिस स्तूप का उल्लेख किया है वह भी जैन स्तूप ही होना चाहिये । इस महातीर्थ में स्थित जैन मंदिरों को कब और किसने ध्वंस किया यह खोज का विषय है । श्री जिनप्रभसूरि का स्वर्गवास वि० सं० १३६० में हुआ । इससे स्पष्ट है कि विक्रम की १४ वीं शताब्दी तक यह जैन महातीर्थ विद्यमान था । इससे अनुमान होता है कि संभवतः इस महातीर्थ का ध्वंस सुलतान सिकन्दर बुतशिकन ने किया होगा । इसका समय विक्रम की १५ वीं शताब्दी है । इस अत्याचारी ने अफ़गानिस्तान से लेकर काश्मीर तथा सारे पंजाब में देवमंदिरों का ध्वंस किया और तलवार के ज़ोर से भारतीयों को मुसलमान बनाया। इसका विवरण हम आगे काश्मीर के प्रकरण में लिखेंगे । डा० बूल्हर की प्रेरणा से डा० स्टाइन ने सिंहपुर के उन जैन मंदिरों का पता लगाया । उन्हें मालूम हुआ कि कटाक्ष से दो मील की दूरी पर मूर्ति नामक गांव में इन मंदिरों के खंडहर 1. श्वेताम्बर जैन मंदिर 2. Budhist Readers of the western Vol. I P. 143-45 ३. सिंधी जैन विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित जिनप्रभ सूरिकृत विविध तीर्थंकल्प में चतुरशीति (८४) जैन महातीर्थ नामक कल्प | ( लिंगभिधः का अर्थ इन्द्र द्वारा निर्मित तीर्थक्षेत्र है । अतः यह तीर्थ देवनिर्मित नाम से प्रसिद्ध था। इससे यह स्पष्ट है कि यह तीर्थं इतना प्राचीन था कि इसके निर्माण का समय किसी को ज्ञात नही था ) 4. जिनप्रभ सुरि कृत कल्प ४६ पृ० ८५,८६ ( विविध तीर्थ कल्प) 5. जिन शासनप्रभावक जिनप्रभ तथा उनका साहित्य पृ० ६१ 6. सिंहपुर का वर्तमान नाम मूर्ति गांव का उल्लेख डा० स्टाईन ने किया है। संभवतः जैन मूर्तियों वाले जैन मंदिरों के खण्डहरों के कारण इस स्थान का नाम मूर्तिगांव प्रसिद्ध हो गया होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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