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जैनधर्म की प्राचीनता और लोकमत
कुछ उद्धरणों का यहाँ उल्लेख करते हैं(११) “ॐ नमोऽहंतो ऋषभो वा ॐ ऋषभं पवित्रम्"
वैदिक साहित्य में अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) का उल्लेख १- ॐ रक्ष रक्ष अरिष्टनेमि स्वाहा । वामदेव शान्त्यर्थमुप विधीयते सोऽस्माकं अरिष्टनेमि स्वाहाः । २-"ॐ स्वस्ति: न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्तिनो वृहस्पतिर्दधातु ॥" (यजुर्वेद अ० २५) ३.---"रेवताद्रो जिनो नेमि युगादि विमलाचले। ऋषिणाश्रमा देव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥” (प्रभास पुराण) ४-"नाहं रामो न मे वांछा, भावेषु न मे मनः । शांतिमास्थातुमिच्छामि चात्मन्येव जिनो तथा ॥ दर्शनवम वीराणां सुरासुर नमस्कृत्य । नाति त्रितयं कर्ता यो युगादौ प्रभो जिनः ॥" ___ बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) की ऐतिहासिकता
श्री अरिष्टनेमि के विषय में हमने वैदिक साहित्य के उद्धरण दिये हैं। अब उनके विषय में कतिपय विद्वानों के मतों का यहाँ उल्लेख करते हैं ।
(१) डा० फुरहर एपिग्राफिका इंडिका वाल्युम २ पृ० २०६-२०७ में लिखते हैं कि"जैनियों के बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ ऐतिहासिक पुरुष माने गये हैं।"
(२) भगवद्गीता के परिशिष्ट में भी श्रीयुत बरवे स्वीकार करते हैं कि श्री अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के (ताऊ समुदविजय के पुत्र) भाई थे और ये जैनियों के बाईसवें तीर्थंकर तथा श्रीकृष्ण के समकालीन थे। यदि श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो अरिष्टनेमि उनके भाई और समकालीन होने से अवश्य ऐतिहासिक पुरुष माने जायंगे ।
(३) श्री नेमिनाथ की ऐतिहासिकता प्राचीन ताम्रपत्र से भी प्रमाणित है। यह ताम्रपत्र प्रभासपट्टन से भूमि खनन से प्राप्त हुप्रा है । जिसका अनुवाद डा० प्राणनाथ विद्यालंकार ने किया है। उसमें बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्र ने बर के द्वारा सौराष्ट्र के गिरिनार पर्वत पर स्थित नेमि-मंदिर के जीर्णोद्धार का उल्लेख है । बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्र नेजर प्रथम का समय ११४० ई० पू० है (यह पार्श्वनाथ से पहले हुआ) । द्वितीय का समय ६०४-५६१ ई० पू० के लगभग कहा जाता है (यह महावीर के केवलज्ञान से पहले हुना)। इस राजा ने अपने देश की उस पाय को जो इसे नाविकों के द्वारा कर से प्राप्त होती थी, जूनागढ़ के गिरिनार पर्वत पर स्थित अरिष्टनेमि की पूजा के लिये प्रदान की थी। इससे स्पष्ट है कि श्री पार्श्वनाथ भगवान से भी यह पहले का मंदिर था। उस समय श्री नेमिनाथ अन्तिम निकटवर्ती तीर्थंकर होने का प्राप्त प्रमाण उन्हें निःसंदेह ऐतिहासिक सिद्ध करता है।
1. अनेकान्त मासिक हिन्दी वर्ष ११ किरण १ मोहन-जो-दड़ो कालीन और आधुनिक जैन संस्कृति पृष्ठ ४८
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