________________
जिन प्रतिमा पूजन जैनागम सम्मत है
४२७
प्रतिबोध हुआ और जब तक उसने दीक्षा ग्रहण नहीं की तब तक वह प्रतिदिन उस प्रतिमा की पूजा करता रहा।
३. श्री समवायांग सूत्र में समवसरण के अधिकार के लिये कल्पसूत्र का उदाहरण दिया है। इसी प्रकार श्री वृहत्कल्प सूत्र के भाष्य में समवसरण के स्वरूप का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उस में लिखा है कि समवसरण में अरिहंत स्वयं पूर्व दिशा सन्मुख विराजते हैं और दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तीन दिशाओं में उन के तीन प्रतिबिम्ब (जिनमूर्तियां) इन्द्रादि देवता विराजमान करते हैं। यहां आनेवाले जैसे मूल तीर्थंकर को वन्दन करते हैं वैसे ही उन प्रतिमानों को भी वन्दन करते हैं।
४. श्री भगवती सूत्र में कहा है कि जंघाचारण मुनि नन्दीश्वरद्वीप में शाश्वती जिनप्रति मानों को वंदना-नमस्कार करने के लिये जाते हैं।
५. श्री भगवती सूत्र में तुगिया नगरी के श्रावकों द्वारा जिनप्रतिमा पूजने का वर्णन है।
६. श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में द्रोपदी (पांडव राजा की पुत्रवधू) ने जिनप्रतिमा की सत्तरहभेदी पूजा की तथा नमस्कार रूप नमत्थुणं का पाठ पढ़ा ऐसा वर्णन है। .
७. श्री उपासकदशांग सूत्र में आनन्द प्रादि दस श्रावकों के जिनप्रतिमा वन्दन पूजन का अधिकार है। मात्र इतना ही नहीं पर प्रानन्द श्रावक का अन्यमतावालबीयों द्वारा ग्रहण की हुई जिनप्रतिमा को न मानने का विवरण भी मिलता है ।
८. श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में साधु द्वारा जिनप्रतिमा की वैयावच्च करने का वर्णन है। ६. श्री उववाई सूत्र में बहुत जिन मंदिरों का अधिकार है । १०. इसी सूत्र में अंबड़ श्रावक के जिनप्रतिमा पूजने का अधिकार है। ११. श्री रायपणीय सूत्र में सूर्याभदेवता के जिनप्रतिमा के वांदने पूजने का वर्णन है।
१२. इसी सूत्र में चित्रसारथी तथा परदेशी राजा (इन दोनों श्रावकों) के जिनप्रतिमा पूजने का वर्णन है।
१३. श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र में विजय प्रादि देवतामों के जिनप्रतिमा पूजने के वर्णन हैं।
१४. श्री जम्बूद्वीप पण्णत्ति में यमकदेवता आदि के जिनप्रतिमा पूजने का वर्णन है।
१५. श्री दशवकालिक सूत्र की नियुक्ति में श्री शय्यंभव सूरि को श्री शांतिनाथ की प्रतिमा देखकर प्रतिवोध पाने का वर्णन है ।
१६. श्री उत्तराध्ययन सूत्र की नियुक्ति के दसवें अध्ययन में श्री गौतमस्वामी के अष्टापद तीर्थ की यात्रा करने का वर्णन है।
१७ इसी सूत्र के २६वें अध्ययन में थयथुई मंगल में स्थापना को बन्वन करने का वर्णन है।
१८. श्री नन्दी सूत्र में विशालानगरी में मुनि सुव्रतस्वामी का महाप्रभाविक थूभ (स्तूप) कहा है। ___१९. श्री अनुयोगद्वार सूत्र में स्थापना माननी कही है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org