________________
४०६
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
भी लिखी हैं। जिनका प्रकाशन लुधियाना पंजाब के स्थानकवासी संघ ने किया है । आपका स्वर्गवास लुधियाना में हुआ । अापका तपागच्छीय प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (आत्माराम) जी से ७५ वर्ष का समयांतर है । यानी ७५ वर्ष बाद हुए ।
जैन साहित्य की महानता जैन साहित्य बड़ा विशाल है। कोई भी ऐसा विषय नहीं मिलेगा जिस पर रचे हुए अनेक ग्रंथ जैन साहित्य में न मिलें । मात्र इतना ही नहीं किन्तु इनमें सब विषयों की चर्चा विद्वतापूर्ण अत्यन्त सूक्ष्मता और बहुत उत्तमता के साथ की गई है।
___ जैनधर्म के प्रधान ४५ प्रागम हैं-११ अंग, १२ उपांग, ६ छेद, ४ मूल सूत्र, १० पयन्ना और २ अवान्तर हैं। ये सिद्धान्त अथवा आगम के नाम से प्रसिद्ध हैं । यह साहित्य अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के जीवन, कथन तथा उपदेश का सार है। यह सारा जैन साहित्य १. द्रव्यानुयोग, २. गणितानुयोग, ३-धर्मकथानुयोग और ६-चरण करणानुयोग इन चार विभागों में विभाजित
(१) गणित सम्बन्धी साहित्य चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, लोकप्रकाशादि अनेक ग्रंथ इतने अपूर्व हैं कि उनमें सूर्य, चन्द्र, तारामंडल, असंख्य द्वीप, समुद्र स्वर्गलोक, नरक भूमियों वगैरह खगोल, भूगोल का विस्तृत वर्णन मिलता है।
(२) हीरसौभाग्य, विजयप्रशस्ति, धर्मशर्माभ्युदय, हम्मीर महाकाव्य, पाश्र्वाभ्युदय काव्य, द्वाश्रय काव्य, यशतिलक चम्पू इत्यादि अनेक काव्य ग्रंथ, ३-सम्मतितर्क, स्याद्वादरत्नाकर, अनेकांत जय पताका, स्याद्वाद मंजरी, तत्त्वार्थसूत्र, प्रमाण मीमांसा आदि अनेक न्याय के ग्रन्थ, ४-योगबिन्दु, योगदष्टि समुच्चय, योगशास्त्र, स्वरोदयसार आदि अनेक योगग्रंथ, ५-ज्ञानसार, मध्यात्मसार, अध्यात्मकल्पद्रुम आदि अनेक प्राध्यात्मिक ग्रंथ, ६-सिद्धहेम प्रादि अनेक व्याकरण ग्रंथ, ७-तिलक मंजरी ग्रथ कादम्बरी को भी मात कर देता है। जैनन्याय, जैनतत्त्वज्ञान, जननीति तथा अन्यान्य विषयों के गद्य-पद्य के अनेक उत्तमोत्तम ग्रंथ जैन साहित्य में भरे पड़े हैं।
(३) प्राकृत साहित्य में ऊंचे से ऊंचा साहित्य यदि किसी में है तो वह जैनदर्शन में ही है।
(४) व्याकरण तथा कथा साहित्य तो जैन साहित्य में अद्वितीय ही है। जैन स्तोत्र, स्तुतियाँ, पुरानी गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी भाषाओं के रास (कवितामय-चारित्र) इत्यादि अनेक दिशाओं में जनसाहित्य व्यापक है जो अन्यत्र देखने में कहीं नहीं मिलता।
जैन साहित्य के लिये प्रो० जाहन्स हर्टल लिखता है किThey [ Jains ] are the creators of very popular literature. अर्थात्-जैन लोग बहुत विस्तृत लोकोपयोगी साहित्य के स्रष्टा हैं ।
प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी, तामिल, करनाटकी प्रादि अनेक भाषाओं में जैन साहित्य पुष्कल लिखा हुमा प्राज भी जैन शास्त्रभंडारों में सुरक्षित है। यद्यपि विदेशीस्वदेशी धर्मांध माततायों ने जनसाहित्य को बहुत क्षति पहुंचाई है। अनेकानेक ग्रथ विदेशी ले गये हैं तथापि जो कुछ भी शेष बचा खुचा जनसाहित्य भारत में विद्यमान है वह भारत के अन्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org