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________________ ग्रंथकर्ता और रचनाएं सर्वाधिक प्रिय हैं। (१२) व्याख्यान - दिवाकर, विद्या- भूषण, न्यायतीर्थ, न्यायमनीषी, श्री हीरालाल दूगड़ (सुपुत्र चौधरी दीनानाथ जी) द्वारा ग्रंथ रचना | [वि० सं० २००० से २०३६ तक की रचनाएं ] १. जीवविचार प्रकरण सविवेचन सार्थ सचित्र २. प्रर्हत् जीवन ज्योति ४ भाग (प्रनुदित ) ३. जगत और जैनदर्शन (प्रनुदित ) ४. आत्मज्ञान प्रवेशिका (अनुदित ) तथा जैन तत्वबोध (रचित) ५. बंगाल का आदि धर्म (अनुदित ) तथा जैन पुरातत्त्व सामग्री समीक्षा ( रचित) ६. पंचप्रतिक्रमण सूत्र तथा सार्थ - सविवेचन ( खरतरगच्छीय) ७. नवपद प्रोली विधि तथा प्रक्षयनिधि तप विधि (संकलित ) सप्तस्मरण ८. श्री जिनदर्शन पूजन विधि ( रचित) ६. प्राह्निका (प्रट्ठाई) व्याख्यान (संपादित) निग्गंठ नायपुत्त श्रमण भगवान महावीर तथा मांसाहार परिहार । ( रचित ) ११. वल्लभ काव्य सुधा (संकलित ) १०. १२. वल्लभ जीवन ज्योति चरित्र ( रचित) १३. कतिपय जैनतीर्थों का इतिहास ( रचित) १४. श्री हस्तिनापुर तीर्थ का इतिहास ( दो बार प्रकाशित ) ( रचित) १५. श्री हस्तिनापुर तीर्थ के चैत्यवन्दन, स्तवन, स्तुति-सज्झाय (संकलित ) १६. सद्धर्मसंरक्षक मूनि बुद्धि विजय जी तथा पांच शिष्यों के चारित्र ( रचित) १७. तपसुधा निधि २ भाग ( तप विधि-विधान ) (संकलित ) १८. नवतत्त्व सार्थ-सविवेचन ( प्रेस में ) १६. मध्य एशिया तथा पंजाब में जैनधर्म ( रचित) Jain Education International २०. अन्य अनेक लेखादि रचनाएं २१. जिनप्रतिमा पूजन रहस्य तथा स्थापनाचार्य की अनिवार्यता | ( अप्रकाशित ) २२. श्रीपाल चारित्र ( आचार्य विजयवल्लभ सूरि के प्रवचन ) ( संपादित प्रप्रकाशित ) २३. शकुन विज्ञान (अष्टांग निमित ) २४. स्वरोदय विज्ञान २५. प्रश्न पृच्छा विज्ञान २६. स्वप्न विज्ञान 13 स्नातक 11 13 २७. भद्रबाहु संहिता ( अप्रकाशित), २८. ज्योतिष विज्ञान २९. सामुद्रिक शास्त्र ३० यंत्र-मंत्र-तंत्र कल्पादि संग्रह ३१. औषध श्रौर टोटका विज्ञान ३२. लघु हुनर उद्योग ३३. कोकसार (यति श्रानन्द कृत ) 17 For Private & Personal Use Only 39 27 " " ४०५ 11 कुछ निबन्ध रचनाएं ३४. सम्राट अकबर के जीवन, धर्म विश्वास मौर राजनीति पर जैनधर्म का प्रभाव ३५. जैन समाज समय को पहचाने ३६. पंजाब के ओसवालों को भावड़ा क्यों कहते हैं । ३७. श्री पंचप्रतिक्रमण सूत्र पर प्रस्तावना ३८. पंजाब के उत्तरार्ध लौंका गच्छीय पावलियां | ३६. जिनकल्प और स्थविरकल्प ४०. दिगम्बरों के चालीस प्रश्नों का समाधान (१३) स्थानकवासी प्राचार्य श्री आत्माराम जी महाराज की रचनाएं प्रापने अनेक मूल जैनागमों का हिन्दी भाषांतर किया है । तत्त्वार्थ सूत्र के मूल सूत्रों की श्वे० जैनागमों के पाठों से तुलना करके ग्रंथ के महत्व को बढ़ाया है । अनेक छोटी-मोटी पुस्तकें www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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