________________
४०४
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
४. मुनि शिवविजय (प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि के शिष्य-गृहस्थ नाम मोतीलाल दूगड़) ने चैत्यवंदन, स्तवन, सज्झाय, कविताओं और ग्रथों की रचना की है ।
५. स्वामी सुमतिविजय जी ने अनेक स्तवनों की रचनाएं की हैं जिनका संग्रह सुमतिविलास नाम की पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है।
६. यति तिलकविजय ने अनेक कवितामों तथा दो तीन ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद किया था।
(१०) तपागच्छीय प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (प्रात्माराम) जी की रचनाएं नं० नामग्रंथ प्रारंभ स्थान वि० सं० समाप्ति स्थान वि० सं० १. श्री नवतत्त्व
बिनौली १६२४ बड़ौत
१६२४ २. श्री जैन तत्त्वादर्श गुजरांवाला १६३७ होशियारपुर १९३८ ३. अज्ञान तिमिर भास्कर अम्बाला शहर १९३६ खंभात
१६४२ ४. सम्यक्त्त्व शल्योद्धार
अहमदाबाद १६४१ अहमदाबाद १६४१ ५. श्री जैनमत वृक्ष सूरत
१६४२ सूरत
१९४२ ६. चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग १ राधनपुर. १६४४ राधनपुर १९४४ ७. चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग २ पट्टी
१६४८ पट्टी
१९४८ ८. श्री जैनधर्म विषयक प्रश्नोत्तर पालनपुर १६४५ पालनपुर
१६४५ ६. श्री तत्वनिर्णय प्रासाद जीरा
१९५१ गुजरांवाला १९५३ १० चिकागो प्रश्नोत्तर अमृतसर १९४६ अमृतसर
१६४६ ११. ईसाई मत समीक्षा १२. श्री जैनधर्म का स्वरूप १३. प्रात्म बावनी (पद्य) बिनौलो १६२७ बिनौली
१६२७ १४. स्तवनावली (पद्य) अंबाला शहर १९३० अंबाला शहर १६३० १५. श्री सत्तरभेदी (१७)पूजा(पद्य) अंबाला शहर
अंबाला शहर
१६३६ १६. श्री बीसस्थानक पूजा(पद्य) बीकानेर १६४० बीकानेर
१६४० १७. श्री अष्टप्रकारी पूजा(पद्य) पालीताना १९४३ पालीताना
१६४३ १८. श्री नवपद पूजा (पद्य) पट्टी
१९४८ पट्टी १६. श्री स्नात्र पूजा (पद्य) जंडियाला गुरु १६५० जंडियाला गुरु
११-तपागच्छीय प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सरि की रचनाएं
आपने (१) भीमज्ञान त्रिंशका, (२) गप्पदीपिका समीर, (३) जैन भानु, (४) नवयुग निर्माता (विजयानन्द सूरि चरित्र) अादि अनेक ग्रंथों की रचनाएं की हैं । अनेक चैत्यवन्दन, स्तवन, स्ततियां. सज्झाय प्रादि की रचना की है जो "वल्लभ काव्य सुधा' नामक पुस्तक में प्रकाशित हो चके हैं। अनेक प्रकार की पूजानों की रचनाएं की हैं जो काव्य की दृष्टि से तथा जैन सिद्धांत एवं धर्म, ज्ञान, चारित्र की गहराइयों से भरपूर रचनाएं हैं। ये पूजाएं जैनमंदिरों में पढ़ाने के लिये 1. नं०१ से ६ तक सब जैन श्वेतांबर तपागच्छीय संत हैं । 2. संग्राहक पं० श्री हीरालाल दूगड़।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org