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ग्रंथकर्ता और कवि
भूलचूक गर होय कहीं पे क्षमा करें कविजन ज्ञानी । बुद्धिहीन मोहि दीन जान के, सोध लेना निज जन जानी ॥ कोटलनगर निवास दासका, उर घर के मुनि का चरणन । निज बुद्धि अनुसार कछु चन्दूलाल जिन गुण वर्णन || मुक ताल मत मेरी हीनी, कृपा सद्गुरु ने कीनी । कथे ख्याल चौबीस, चाल जिनकी रंग भीनी ॥1
कवि परिचय - कवि ने वि० सं० १९४४ श्रावण वदि ७ मंगलवार के दिन विजयानन्द सूरि की स्तुति करते हुए उनके द्वारा जैनधर्म को स्वीकार करने का जिकर किया है। जिसमें उसने अपने आपको मालेरकोटला का निवासी ब्राह्मण जाति का बतलाया है, यथा
"हुए तपगच्छ में मुनि मुक्तगामी । विजयानन्द श्रात्माराम स्वामी ॥ १६ ॥ चढ़े जग भानु गुण षट्नीस जानो । जिन्हों की कीरती जग ने पिछानो ॥ १७ ॥ मारग जिनधर्म सुधा बताया । भरम मेरे का ज्ञान से परदा उठाया ।। १८ ।। करूँ मैं आज क्या उनकी बड़ाई । ये शैली जैन की उत्तम दिखाई ।। १६ ।। करो दर्शन ऐसे मुनिराज जी के । करूँ अरजी सुनो संग आज जी ॥२०॥
कृपा जिनकी से पद पूरा बनाया | बढ़ा श्रानन्द सब को ही सुनाया ॥२१॥ संवत् शुभ जान उन्नीसे चुताली | श्रावण कुजवार वदि सातें निराली ||२२|| कहे चन्दुलाल जिन चरणों का दासा । समझ द्विज जात नगर कोटले में वासा ||२३||
(८) पंजाब के कुछ अन्य श्रावक कवि (वि० बीसवीं इक्कीसवीं शताब्दी)
पंजाब में हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, फ़ारसी के अनेक जैनकवि हो गये हैं। हकीम माणकचन्द जी गद्दहिया रामनगर, श्री शोभाराम श्रोसवाल जम्मू, श्री दसोन्धीराम रायकोट, श्री सुन्दरलाल बोथरा जीरा ( इनके भजन सुंदरविलास नामक पुस्तक में कई वर्ष पहले प्रकाशित हो चुके हैं ) श्री मोहनलाल, श्री चिरंजीलाल प्रादि ये सब विजयानन्द सूरि के समकालीन कवि थे । श्री बृजलाल नाहर होशियारपुर, श्री ईश्वरदास होशियारपुर, श्री साबर आदि अनेक कवि प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि जी के समकालीन हो गये हैं । श्री नाज़रचन्द गद्दहिया ( सामानवी) चंडीगढ़, पं० रामकुमार (राम) स्नातक श्री श्रात्मानन्द जैनगुरुकुल पंजाब, (दिल्ली ) ; महेन्द्रकुमार मस्त आदि कई कवि वर्त्तमान में विद्यमान हैं । जिनकी कविताएं समाज में जागृति लाने तथा उत्साहित करने में बहुत उपयोगी हैं ।
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(E) पंजाब में - श्वेतांबर जैन मुनिराज कवि ( २०वीं २१वीं शताब्दी विक्रमी)
१. मुनि बुद्धिविजय (बूटेराय ) जी ने कई कविताएं तथा ग्रंथों की रचनाएं की हैं ।
२. प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि ने अनेक ग्रंथों, पूजाम्रों, स्तवनों आदि की रचनाएं
की हैं।
३. आचार्य विजयवल्लभ सूरि ने अनेक पूजाओ, स्तवनों, सज्झायों, स्तुतियों आदि की तथा अनेक ग्रंथों की रचनाएं की है ।
इस ग्रंथ की प्रतिलिपि पन्नालाल बालकृष्ण जैन ने पालम में मिति चैत्र शुक्ल १२ वि० सं० १९७४ में की। १६ पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में १८ से २२ तक प्रक्षर हैं।
पत्र ८३ एक पत्र के
में
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पृष्ठ २, प्रत्येक
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