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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म " (७) कवि चन्दूलाल (ब्राह्मण) जैन की रचनाएं [मालेरकोटला पंजाव निवासी विक्रम की २०वीं शताब्दी] ___ कवि ने अपने जीवन काल में कितनी रचनाएं की हैं यह ज्ञात नहीं है । कवि की रचनाओं की एक हस्तलिखित प्रति हमें खिवाई ज़िला मेरठ के शास्त्रभण्डार से प्राप्त हुई है। इस कृति का नाम कवि ने 'भजन कल्पद्र म' रखा है और दो खण्डों में पूर्ण किया है। उसमें पत्र ८३, कद ८॥"४७" है । इसमें कवि की १७२ रचनाएं हैं । २५ रचनाएं अलग-अलग २४ तीर्थंकरों के स्तवन तथा कलश हैं। २६ से १०२ तक भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों, पंजाब के मन्दिरों का जिनकी प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (आत्माराम) जी द्वारा अंजनशालकाएं और प्रतिष्ठाएं हुई हैं उन का प्रांखों देखा वर्णन है तथा प्राचार्य श्री के जीवन सम्बन्धी प्रत्यक्ष देखा हुअा विवरण है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ बड़ा महत्वपूर्ण है। यह रचनाएं वि० सं० १९४१ से १६५७ तक की हैं। परिचय-चौबीसी (चौबीस तीर्थंकरों के स्तवन) वि० सं० १९५६ फाल्गुन वदि ५ । प्रारम्भ-ऋषभदेव आदि चौबीस के चरणकमल धर शीश । जिन-ग्रंथों का सार ले, वरणूं पद चौवीस ॥१॥ कवि नहीं गायक नहीं, नहीं छंद का ज्ञान । नहीं बोध गण दग्ध का, न जाने स्वर तान ।।२।। केवल श्री जिनराज की, बसी भक्ति उर प्रान । तातें यह वर्णन करूँ, धर जिनवर का ध्यान ॥३।। वीतराग गुण सिन्धु सम, सुरनर लहे न पार । मो समान मतिमंद शठ, को कवि वर्णन हार ।।४।। मोय भरोसा एक यह, श्रीजिन दीनदयाल । चरण शरण मोय जानके, करें आप प्रतिपाल ।।५।। मात-पिता निज पुत्र के, जिम तोतर गुण बैन । गिने न दोष-प्रदोष कछु, लहे परम सुखचैन ।।६।। ऐसे श्री जिनवर प्रभू, दयासिन्धु भगवान । सुन प्रसन्न अति होयेंगे, बाल विनय मम जान ।।७।। चरणकमल गुरुदेव के, चंदूलाल उर-धार । चौबीसी वर्णन करूँ, निज बुद्धि अनुसार ॥८॥ अन्त- (चबोला) कृपा भई गुरुदेव की, सिद्ध हुए सब काज । चौबीसी जिन राज की, संपूर्ण भई आज । साल रस तत्त्व अंक शशि (१९५६) सुखकारी। फागुण मास विलास पंचमी चन्द्रवार की अंधियारी ।। जो नर नारी पढ़ चित्त हित से, सुख सम्पत सगरा पावे । कर कर्मदल नास अन्त में शिव-पुर में सुख से जावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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