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________________ ३६८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म श्री सीमंधर स्वामी थी विहरमान जिन बीस । वन्दे हरजस भगतिधर गावे गुण निसदीस ॥३।। अन्त-श्री जैननायक षेमदायक मुक्तिलायक पूजिये । गुणरत्न प्रागर ज्ञानसागर सेव नागर हुजिये । पणसठ संवत् से अठारह चेत सित प्रतिपदा भणी। विध दिवस कुसपुर नमत हरजस देहु प्रभु समताघणी ॥८५।। ३. परिचय-श्री सीमंधर स्वामी छंद वि० सं० १८६५ चैत्र सुदि १ प्रारंभ-सकल जगति परि दयाल प्रभु सकल ध्यान भगवन्त । वन्दो श्री जिनवर परमगुरु जिह ढिग करण सन्त ॥१॥ कर्म निर्जरा हेतु सुर करै भक्ति उत्साह । राग-दोष ते रहित प्रभु सरब दरब अनचाह ।।२।। अन्त—(कलश) श्री जैननायक खेमदायक मुक्तलायक पूजिये । गुणरत्न प्रागर ज्ञानसागर सेवनागर हूजिये ।।३२।। पणसठ संवत से अठारै चेत सुदि प्रतिपद भणी। विध दिवस कुसपुर जपत हरजस देहु प्रभु समता धणी ॥३॥ ४. परिचय-देव रचना वि० सं० १८७० माघ सुदि ५ प्रारम्भ-सकल जगतपति परमपद पूरण पुरुष पुराण । परम जोति राजत मुदा सो वन्दो भगवान ।।१।। वन्दो श्री रिखभादि जिन वर्द्धमान अरिहंत । श्री चन्द्राणण देव थी वारिषेण पर्यन्त ॥२॥ श्री सीमंधर स्वामी थी विहरमान जिन वीस । वन्दे हरजस भक्तिधर गावे गूण निस-दीस ।।३।। अन्त-अठारह से सत्तरहवें पंचमि सित मांहे । बुद्ध दिन उत्तर मीन चन्द सुव सत उच्छाहे ॥ कुसपुरवासी ओसवाल हरजस रच लीनी सुर रचना। जिनधर्म पुष्ट सम गति रस भीनी जिह सुन पठ चित्त अर्थधर । बैठे ज्ञान सत बुद्ध तनो देव अरिहंत जी करजो समकित शुद्ध ।।६२५।। कवि का परिचय - कवि हर जसराय बीसा ओसवाल गद्दहिया गोत्रीय जैन धर्मानुयायी सुश्रावक नगर कसूर-पंजाब के रहने वाले थे। ग्रापकी रचनाओं के पढ़ने से ज्ञात होता है कि आप जैन आगमों के मार्मिक विद्वान थे, जैनधर्म पर पाप को दृढ़ आस्था (श्रद्धा) थी और आप का जीवन सरल-सादा,निर्मल तथा उच्चकोटि के श्रावक धर्म के प्राचरणवाला था। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं के पाप पंडित थे। पाप ने अपनी रचनाओं में अपना पारिवारिक परिचय, विद्यागुरु, व्यवसाय, जन्म-मृत्यु समय तथा आयु आदि का कोई परिचय नहीं दिया । पाप ने कुल कितने ग्रंथों की रचना की यह भी ज्ञात नहीं हैं। इस समय मात्र आप की उपर्युक्त चार रचनाएं ही उपलब्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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