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________________ जैन शिक्षण संस्थाएं ३७७ साहित्य मंदिर में विद्यार्थी-- इस विभाग में सात विद्यार्थी थे-(१) हीरालाल दूगड़गुजरांवाला निवासी (इस इतिहास ग्रंथ के लेखक) (२) कस्तूरीलाल दुगड़-कसूर निवासी (३) ईश्वरलाल बेगानी-मुलतान निवासी, (४) हंसराज नखत-पट्टी निवासी, (५) रामकुमार जैन-मक्खननगर जिला मेरठ निवासी, (६) मणिलाल श्रीमाली-राघनपुर (गुजरात) निवासी तथा (७) उम्मेदमल गुजराती।। इन सात विद्यार्थियों ने ई० स० १९२४ में गुरुकुल में प्रवेश पाया और १६२६ ई० में यहाँ की स्नातक तथा न्यायतीर्थ (कलकत्ता) एवं जैनसिद्धांत, कर्मसिद्धान्त, (छह कर्मग्रंथ) न्याय आदि अनेक विषयों की परीक्षाएं तथा भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर एज्युकेशन बोर्ड की अनेक परीक्षाएं उत्तीर्ण करके "विद्याभूषण" की उपाधि से अलंकृत होकर गुरुकुल के स्नातक रूप में विदा ली। __इसके बाद गुरुकुल को साहित्यमंदिर बन्द कर देना पड़ा। कारण यह था कि इस विभाग के लिये योग्यशिक्षण शास्त्रियों का सहयोग न मिल पाया । येनकेन प्रकारेण इसी प्रथम सत्र के विद्यार्थियों का शिक्षण पूरा हो पाया था। faau sifat (High School section) : इस विभाग में लगभग ८० विद्यार्थी थे और इन की पाँच कक्षाएं थीं। पृथ्वीराज-पट्टी, जगदीश मित्र-पट्टी, बनारसीदास-जालंधर, कस्तूरीलाल-पपनाखा, धनरूपमल-छोटी साधड़ी (मेवाड़), हजारीलाल, बसंतलाल, (राजस्थानी) शांतिलाल गुजराती आदि भारत के सब प्रांतों के जैन-जनेतर विद्यार्थी इस सत्र में शिक्षा पाते थे। यह विभाग गुरुकुल की समाप्ति तक किसी न किसी रूप में चालू रहा। पुराने विद्यार्थी पढ़ कर जाते रहे और नये प्रवेश पाते रहे और 'विनीत" की उपाधि प्राप्त करके गुरुकुल से विदा लेते रहे। (१) इन विद्यार्थियों में से बनारसीदास सुपुत्र ईश्वरदास खंडेलवाल जालंधर वाले, प्रतूल कुमार सुपुत्र मोतीलाल मुन्हानी गुजरांवाला निवासी ने भागवती दीक्षाएं ग्रहण की । नाम क्रमश: बलवन्तविजय और जितेन्द्रविजय हुआ । पृथ्वीराज पट्टी निवासी ने गुरुकुल में विनीत परीक्षा पास कर आगे बनारस जाकर हिन्दू विश्वविद्यालय में M. A. की डिग्री प्राप्त की। जगदीशमित्र पट्टी वाले बालब्रह्मचारी, तपस्वी, सच्चरित्र, धार्मिकक्षेत्र में निःस्वार्थ सेवामों में संलग्न हैं। इनके पूर्वज पं० अमीचन्दजी भी जैनागमों के विद्वान थे और साधु-साधुओं को जैनदर्शन का अध्यापन कराते रहे हैं। इस प्रकार इस संस्था से शिक्षण पाये हुए सब विद्यार्थी व्यापारिक, राजनैतिक, सरकारी नौकरी, शिक्षक, साहित्यसर्जन आदि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्यरत हैं। संस्था की अपनी बिल्डिंग __ समाधि मंदिर में स्थापित हो जाने के बाद विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या को देखकर दो एक वर्षों के बाद गुजरांवाला के नये रेलवे स्टेशन के पास एक किराये की बिल्डिंग में गुरुकुल का स्थान परिवर्तित कर दिया गया और पाकिस्तान बनने से कुछ वर्ष पहले श्री प्रात्मानन्द जैन भवन 1. नं० १ से ४ विद्यार्थी पंजाब के पोसवाल श्वेतांबर जैन, नं. ५ उत्तरप्रदेश का जैनब्राह्मण, नं०६ गुजराती श्वेतांबर जैन तथा नं. ७ गजराती स्थानकवासी थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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