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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
खुशी से तप अथवा खाने-पीने की किसी वस्तु का त्याग करके प्रायश्चित ले लेता था।
इस आदर्श संस्था में किसी भी मत-पंथ-संप्रदाय के भेद भाव के बिना जैन-जनेतर विद्यार्थी प्रवेश पाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। . स्वतन्त्रता प्रान्दोलन
देश की स्वतन्त्रता के प्रान्दोलन में भी अधिष्ठाता, सुप्रिटेंडेन्ट, मंत्री, अध्यापक, विद्यार्थी सभी भाग लेते थे । गुरुकुल के अधिष्ठाता बाबू कीर्तिप्रसाद जी जैन, मंत्री लाला तिलकचन्दजी जैन को गांधी जी के नमक सत्याग्रह के आन्दोलन में भाग लेने से अंग्रेज सरकार ने कारावास का दंड भी दिया था । लाला तिलकचन्द जी जिला गुजरांवाला कांग्रेस कमेटी के मंत्री भी थे और बाबू कीर्तिप्रसाद जी मेरठ जिला काँग्रेस कमेटी के मंत्री रह चुके थे। दोनों भारतीय कांग्रेस कमेटी के मंत्री रह चुके थे। सक्रिय सदस्य भी थे।
स्वतंत्रता मान्दोलन के राष्ट्र नेता ___ जो भी राष्ट्रनेता पंजाब में लाहौर तक आता अथवा गुजराँवाला से आगे के नगरों में स्वतंत्रता अान्दोलन के लिये जाता, वह समय निकाल कर इस गुरुकुल में अवश्य आता था। गुरुकुल के विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर चरखा और तकली कातता था। सायं प्रातः प्रार्थना में शामिल होना अपना गौरव समझता था, विद्यार्थियों के काते हुए सूत को मोल लेकर उसका कपड़ा बुनाकर पहनने में अपने आप को धन्य मानता था। गुरुकुल की उद्योगशाला में विद्यार्थियों, द्वारा तैयार की गई वस्तुओं को बड़े चाव से खरीदता तथा गुरुकुल के विद्यार्थियों, कार्यकर्तायों के साथ सादा भोजन करके सादगी और सरलता की प्रशंसा करता था।
लाला लाजपतराय, भीमसेन सच्चर, सेठ अचलसिंह जैन, पं० मोतीलाल नेहरु, पं० जवाहर लाल नेहरु, मौलाना अब्बुलकलाम आजाद, मौलाना मुहम्मदअली, शौकतअली, डाक्टर किचलू, डाक्टर सत्यपाल, छबीलदास, डा० गोपीचन्द भार्गव, लाला दुन्नीचन्द, मणिलाल कोठारी (जैन) आदि जो भी नेता यहाँ आते थे वे इस संस्था को राष्ट्रभावनाओं से परिपूर्ण पाकर बहुत प्रसन्न होते थे और पंजाब की एक महान राष्ट्र संस्था मानते थे। अपनी सम्मति संस्था की लागबुक में सन्हरी अक्षरों में अंकित करते थे ।।
व्यायामशाला मौर सेवाकार्य शिक्षण
विद्यार्थियों के स्वास्थ्य तथा स्फूति कायम रखने केलिये व्यायाम, प्रातःकाल भ्रमण, ड्रिल तथा गदका-लाठी चलाने का प्रशिक्षण भी अनिवार्य था।
सेवाकार्यों के लिये स्काउट (बालचर) शिक्षण भी विद्यार्थियों को दिया जाता था प्रत्येक विद्यार्थी को परोपकार का कम से कम एक कार्य प्रतिदिन अवश्य करना पड़ता था ।
इस प्रकार यह संस्था राष्ट्रीय तथा धार्मिक एवं व्यवहारिक शिक्षण का समन्वय बन गई थी। इसका प्रत्येक विद्यार्थी सादा, सरल, परिश्रमी, स्वावलंबी, सच्चरित्र, सत्यवादी और सेवा भावी था । शिक्षा की दृष्टि से भी स्कूल और कालेज के विद्यार्थियों से अधिक योग्य था। यह पंजाब की एक आदर्श संस्था मानी जाती थी। 1. खेद का विषय है कि वह लागबुक पाकिस्तान में रह जाने से गुरुकुल का राष्ट्र सेवा सम्बन्धी वह उज्ज्वल
इतिहास लुप्त हो गया है।
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