SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनमादर और सस्थाए ३६. मुजफरनगर जिला मेरठ श्री दर्शनविजय जी त्रिपुटी के उपदेश से यहां श्वेतांबर जैनधर्म की स्थापना हुई । यहाँ पर १०० परिवार श्वेतांबर जैनों के हैं । (१) एक श्वेतांबर जैनमंदिर है । (२) जैन श्वेतांबर उपाश्रय है । ४०. सरधना (मेरठ) श्री दर्शन विजय जी (त्रिपुटी) के उपदेश से यहाँ श्वेतांबर जैनधर्म की स्थापना हो जाने पर यहाँ के श्रावकों के धर्माराधन के लिये - (१) श्वेतांबर जैन मंदिर का निर्माण हुआ और प्रतिष्ठा भी त्रिपुटी महाराज ने की । (२) श्वेतांबर जैन धर्मशाला ( उपाश्रय) भी है । ४१. बिनौली जिला मेरठ (१) एक श्वेतांबर जैनमंदिर है । मूलनायक श्री शांतिनाथ जी हैं । ( २ ) इसके साथ ही एक श्वेतांबर जैनउपाश्रय भी हैं। आचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी के उपदेश से इस मंदिर का निर्मान कराया गया और इसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने वि० सं० १९८२ जेठ सुदि ६ को की । इस मंदिर के लिये विनौली के रहीस लाला मुसद्दीलाल बीसा अग्रवाल श्वेतांबर जैन ने अपनी दो दुकानें दीं। जिसमें यह मंदिर बना । इस मंदिर की प्रतिष्ठा का सारा खुर्च लाला जी के सुपुत्रों लाला श्रीचन्द जी तथा बाबू कीर्तिप्रसाद जी बी० ए० एल० एल० बी० ने किया था । आपका परिवार लाला मुसद्दीलाल - प्यारेलाल जैन के नाम से प्रख्यात है । ४२. हस्तिनापुर जिला मेरठ २५७ ( १ ) एक कलापूर्ण भव्य श्वेतांबर जैनमंदिर है । मूलनायक श्री शांतिनाथ प्रभु हैं । इसके मध्य के मूलगंभारे में श्री शांतिनाथ तथा इसके दायें बायें बाले मूलगंभारों में श्री कुंथुनाथ और श्री अरनाथ प्रभु मूलनायक हैं । इसका निर्माण वि० सं० १६२६ में कलकत्ता के सेठ प्रतापसिंह पारसान ने कराकर प्रतिष्ठा कराई थी । प्रतिजीर्ण हो जाने के कारण लगभग एक सौ वर्ष बाद श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति ने इसका जीर्णोद्धार कराकर श्रामूल-चूल नवनिर्माण कराया है और प्रतिष्ठा तपागच्छीय आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के पट्टधर जिनशासनरत्न श्राचार्य श्री विजय समुद्र सूरि ने की है । यह श्री शांतिनाथ जी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है । ( २ ) इसके पीछे श्री ऋषभदेव का पारणा (श्वेतांबर जैन ) मंदिर है । इसके मध्य में श्री ऋषभदेव तथा श्रेयांसकुमार की पारणा करते-कराते हुए भव्य खड़ी प्रतिमाएं हैं और मंदिर की चारों दीवालों पर श्री शांतिनाथ, श्री कुंथुनाथ, श्री अरनाथ के चार-चार कल्याणकों के तथा श्री ऋषभदेव के पारणे के अवसर की घटसाम्रों के मार्बल के पाषाणपट्ट मढ़े हुए हैं । इसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य विजयसमुद्र सूरि जी के पट्टधर विजयइन्द्रदिन्न सूरि ने वि० सं० २०३५ में कराई है । 1. इस तीर्थ का विस्तृत विवरण जानने के लिये अध्याय २ Jain Education International में देखें । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy