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मध्य एशिया मोर पंजाब में जैनधर्म
इस गद्दी के यति गुहस्थी बन चुके हैं और जैनधर्म को छोड़ चुके हैं । यह दादावाड़ी और सारी जमीन इन्हीं के कब्जे में है।
३४. करनाल (हरियाणा) (१) यहां पर एक हिन्दू मंदिर श्रवणकुमार के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह पहले श्वेतांबर जैनमंदिर था। आज भी इस मंदिर में एक जैनतीर्थ कर की प्रतिमा है । इस प्रतिमा के सिर पर पगड़ी बांध तथा बस्त्र पहनाकर इस का रूप एकदम बदल दिया है।
३५. चरखीदादरी (हरियाणा) (१) यहां एक श्वेतांबर जैनमंदिर है। इस समय मात्र एक ही घर बीसा श्रीमाल श्वेतांबर जैनों का है। बाकी सब परिवार दसा श्रीमाल ढूढकपंथी हैं।
स्व० भाई श्री बंसीधर जी व इनके छोटे भाई डाक्टर बनारसीदास जी का ही एक मात्र परिवार जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक है । डा० बनारसीदास बाहर रहते हैं और भाई बंशीधर जी B.A. B.T. के इकलौते पुत्र डाक्टर श्री धर्मवीर का परिवार यहां पर है और यही मंदिर की व्यवस्था आदि भी करते हैं। डा० धर्मवीर श्री प्रात्मानन्द जैनगुरुकुल पंजाब गुजरांबाला के विद्यार्थी हैं।
३६. हनुमानगढ़ कोट (प्राचीन नाम भटनेरगढ़) यह स्थान रेलवे जंकशन हनुमानगढ़ स्टेशन से तीन मील की दूरी पर है। यह गंगानगर (राजस्थान) की एक तहसील है। यह पहले सिंध में था अब राजस्थान में है। यहां प्रोसवालों के काफ़ी घर हैं, और सब ढंढक मत के अनुयायी बन गये हैं। किन्तु इन लोगों को जिनमंदिर पर श्रद्धा है।
(१) इस दुर्ग में सब से ऊंचा एक विशाल श्वेतांबर जैन मंदिर है इस समय इसमें मात्र पाषाण की चार प्रतिमाएं विराजमान हैं । घातु की सब प्रतिमाएं चोरी हो गई हैं।
३७. मेरठ छावनी (१) तीन मंजिला जैनश्वेतांबर मंदिर है। मूलनायक श्री सुमतिमाथ हैं । तपागच्छीय मुनि श्री मूलचन्द जी गणि के शिष्य परिवार में मुनि श्री दर्शन विजय जी (त्रिपुटी) के उपदेश से इस मंदिर का निर्माण तथा प्रतिष्ठा हुई।
३८. बड़ौत जिला मेरठ (१) पंचायती श्वेतांबर जैनमंदिर है। इसमें मूलनायक श्री महावीर स्वामी हैं। यहाँ प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के उपदेश से ३५ परिवार श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक धर्मानुयायी बने । इन्हीं के लिये प्राचार्य श्री के उपदेश से यहाँ इस मंदिर का निर्माण हुआ। तथा इन्हीं के द्वारा वि० सं० १९६५ में प्रतिष्ठा हुई।
(२) एक गूरुमंदिर भी है इसमें श्री विजयवल्लभ सूरि, श्री विजयललित सूरि, उपाध्याय श्री सोहन विजय की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं । इनकी प्रतिष्ठा वि० सं० २०१२ में मुनि श्री प्रकाश विजय जी ने कराई थी।
(३) श्री मंदिर जी से सटा हुआ एक जैन श्वेतांबर उपाश्रय भी है ।
1. भाई बंशीधर जी का परिचय श्रावकों के परिचय में देंगे।
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