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जैनधर्म की प्राचीनता और लोकमत
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These two ricks place before us the truth that we are perhaps recognising in the Harappa statues a full fledeged Jaina Tirthankra in the characteristicpose of Physical abandan (kayotsarga).
The Statue under description is therefore a splendid representative specimen of this thought of Jainism at perhaps its very inception.
अर्थात्- इन दोनों रिक्स (धड़ों) मूर्तियों से इस बात की सत्यता पर रोशनी पड़ती है कि शायद यह हड़प्पा काल की जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ-जैनधर्म में वर्णित कायोत्सर्ग मुद्रा की ही प्रतीक हैं। इसलिये कथित मूर्तियाँ जैन धर्म के इस विचार का शायद आरम्भ से ही जीता-जागता नमूना है। इत्यादि
___ इन्हीं स्थानों से ऐसी सीलें भी उपलब्ध हुई हैं जिन पर स्वस्तिक अंकित है और उसके आगे हाथी नतमस्तक खड़ा है। भारतीय पुरातत्त्ववेत्ता अभी तक इस प्रतीक का रहस्योद्घाटन करने में असमर्थ रहे हैं। किन्तु जैन प्रतीक योजना के छात्र को इसके समाधान में कुछ भी कठिनाई नहीं होगी। प्रतीकात्मक रूप में स्वस्तिक सुपार्श्वनाथ का चिन्ह है और हाथी उनके यक्ष मातंग तथा यक्षिणी शांतिदेवी के वाहनों का द्योतक है। अर्थात् सुपार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षिणी उनको नत मस्तक हैं । यह मान्यता भी श्वेतांबर जैनों की है । दिगम्बर इनके विजय यक्ष का वाहन सिंह मानते हैं और यक्षिणी पुरुषदत्ता अथवा मानवी का वाहन बैल मानते हैं।
भारतीय इतिहास का जब वैज्ञानिक अध्ययन शिशु अवस्था में था तब विद्वानों ने उसके विवेचन का कुछ ग़लत तरीका अपना लिया था। वे इस पृथ्वी तल पर डाविन के प्राणी विकासबाद के अनुसार बन्दर से मनुष्य की उत्पत्ति बतलाकर भारत में आदि सभ्यता का दर्शन वैदिक काल से मानते थे। कारण यह था कि तब तक उनके पास इतिहास जानने के साधन ही कम थे तथा विश्व के सर्वप्रथम साहित्य के रूप में ऋग्वेद तथा बाद में रचित अन्य तीन वेद ही उनके सामने थे। पर आज भारत के वेदकालीन और उसके पश्चात् युग के संस्कृति और इतिहास को जानने के लिये मात्र प्रचुर लिखित साहित्य ही नहीं अपितु विशाल पुरातत्त्व सामग्री भी उपलब्ध है तथा वैदिक आर्यों के भारत में आगमन से पूर्व की भारतीय संस्कृति और सभ्यता के खोज पूर्वक ज्ञान के लिये भी विद्वानों ने अनेक साधन जुटा लिये हैं । अाज विद्वान लोग जिन साधनों का प्राश्रय लेकर उस सदूर अतीत का चित्र उपस्थित कर रहे हैं वे. मुख्य तीन हैं :
(१) मानववंश विज्ञान (Anthropology), (२) भाषा विज्ञान (Philalogy) और (३) पुरातत्त्व (Archaeology), प्रथम मानववंश विज्ञान के द्वारा मनुष्य के शरीर का निर्माण विशेषकर मुख, नासिका के निर्माण का अध्ययन कर विविध मानव शाखाओं की पहचान की गई है । द्वितीय भाषा विज्ञान से भाषा के विविध अंगों के विकास के अध्ययन के साथ विविध संस्कृतियों के प्रतिनिधि शब्दों को खोज निकाला है। भाषा विज्ञान से तत्कालीन समाज की विचारधारा तथा सांस्कृतिक स्थिति का पता लगता है। तृतीय पुरातत्त्व सामग्री इतिहास का एक सुदृढ़ आधार है। जहाँ अन्य साधन मौन रह जाते हैं या धुंधले दीख पड़ते हैं, वहाँ इस पुरातत्त्व की गति है। यह अन्य निर्बल से दीखने वाले प्रमाणों में सबलता प्राप्त करता है। इस पुरातत्त्व की प्रेरणा से हम भारतीय संस्कृति के आधारों को खोजने में समर्थ हुए हैं।
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