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________________ ३६४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनमश्र श्रीसंघ से अनुमति प्राप्त की । परन्तु इसने इस उपाश्रय में इंगलैंड के सम्राट जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार के कलापूर्ण दृश्य की सीमिण्ट की मूर्तियां बनवाकर निर्माण करा दिया। इसके कुशल शिल्पी जानमुहम्मद ने इन मूर्तियों का इतना सुन्दर निर्माण किया है कि ऐसा लगता है मानों जीवित दरबार ही है । इसके अतिरिक्त अनेक पुतलियों केसाथ पशु-पक्षियों की मूर्तियों की रचनाएं और कांच के सुन्दर काम ने इसकी शोभा को चारचांद लगा दिये हैं। आज यह बिल्डिंग शीशमहल के नाम से प्रसिद्ध है । इसकी सुन्दरता के कारण इस भाबड़याँ बाज़ार का नाम भी बदलकर शीशमहल बाज़ार नाम प्रसिद्ध हो गया है । दूर-दूर के लोग इसे देखने आते हैं। यह सम्पत्ति श्री जैनश्वेतांबर संघ होशियारपुर की है और यही इसकी सारसंभाल करता है । कुछ अन्य स्मारक (७) दादी कोठी- जिला होशियारपुर की तहसील गढ़शंकर, थाना महालपुर में दादीकोठी नाम का एक छोटा गांव है । जहाँ प्रोसवालों के कतिपय प्रमुख गोत्रों-वंशों के मान्य पूर्वजों के स्मारक (जो कोठियों के नाम से प्रख्यात हैं) बने हुए हैं। वहाँ इसके आसपास के नगरों के प्रोसवाल जैन अपने बच्चों के मुंडन संस्कार करने आते हैं। इनमें नाहर, भाभू, महिमी, दुग्गड़ तथा मल्ल गोत्रवालों के स्थान हैं। इन सब गोत्रों वाले प्रोसवाल भाबड़े अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करते हैं । ये सब कोठियाँ एक दूसरे के समीप हैं । बाबे-दादियों दोनों पूर्वजों को पूजा जाता है। एक स्थान बाबा भोमिया (क्षेत्रपाल) का भी है। यहाँ नाथों की समाधी के पास एक जैनतीर्थकर की खंडित पाषाण प्रतामा भी है। जिसका धड़ है, सिर नहीं हैं। यह प्रतिमा पद्मासन में है। इससे यह स्पष्ट है कि किसी समय यहां श्वेतांबर जैनमन्दिर था और इसे माननेवाले जैनी परिवार भी यहाँ प्राबाद थे। (1) होशियारपुर नगर में जो पूजों का मंदिर है (जिसका हमने पहले नं० (१) में उल्लेख किया है) उसमें भगवान श्री शांतिनाथ की एक विशाल धातु की प्रतिमा भी है। जनश्रुति के अनुसार यह प्रतिमा कांगड़ा अथवा उस के आसपास के किसी गाँव के जैन मंदिर से लाई गई थी जो यहाँ के श्रीसंघ ने उसे लानेवाले व्यक्ति से खरीद ली थी। यह प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ है । ३०-रोड़ो जिला सिरसा (हरियाणा) (१) एक छोटा श्वेतांबर जैन मंदिर खरतरगच्छ यति का था। मंदिर के गिर जाने से इस पर किसी जनेतर ने कबजा कर लिया है। इस मंदिर की प्रतिमाये लाला दीवानचन्द प्रोसवाल चौधरी गोत्रीय ने अपनी दुकान के ऊपर चौबारे में लाकर विराजमान कर रखी हैं । (१) ये श्री चन्द्रप्रभु की पाषाण प्रतिमा मूलनायक तथा दो छोटी धातु की प्रतिमाएँ हैं । (२) इन प्रतिमाओं के साथ खरतरगच्छीय दादा श्री जिनकुशल सूरि के चरणबिम्ब भी पाषाण निर्मित हैं। (३) श्वेतांबर खरतरगच्छ का उपाश्रय स्थानक के रूप में बदल लिया गया है । ३१-मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) · पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान बनने के बाद वहाँ कुछ श्वेतांबर परिवार मुरादाबाद में प्राकर आबाद हो गए हैं। इन्होंने वि० सं० २०३४ (ई० सं १९७७) में एक भव्य श्वेतांबर जैनमन्दिर का निर्माण करवा कर प्राचार्य विजयसमुद्र सूरि जी से प्रतिष्ठा कराई। इसी वर्ष यहीं पर भाचार्य श्री का स्वर्गवास हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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