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________________ जैनमंदिर और उपाश्रय प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के उपदेश से हुआ। वि० सं० १९९७ में इसकी प्रतिष्ठा भी इन्हीं प्राचार्य श्री ने कराई। (२) एक श्वेतांबर जैन उपाश्रय है । २०-राहों जिला जालंधर (१) प्राचीन श्वेताँबर जैनमंदिर है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं। इसका निर्माण उत्तरार्ध लौंकागच्छ के यतियों में कराया था और प्रतिष्टा भी उन्होंने की थी। (२) स्थानवासियों का स्थानक है । २१--रोपड़ (रुपनगर) (१) जैन श्वेतांबर मंदिर जिसमें मुलनायक श्री ऋषभदेव जी हैं। इसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य श्री विजयविद्या सुरिजी ने वि० सं० १९८५ माघ सुदि ५ को की थी। (२) श्वेतांबर जैन उपाश्रय (३) स्थानकवासियों का स्थानक २२-लुधियाना (१) पंचायती श्वेतांबर जैनमंदिर है। मूलनायक श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ प्रभु हैं। यह मंदिर दालबाज़ार (नेहरू बाज़ार) में है। इस मंदिर का निर्माण आचार्य श्री विजयानन्द सूरि के उपदेश से हुआ । प्रतिष्ठा वि० सं० १६५२ मिति फाल्गुन सुदि ५ को तपागच्छीय मुनि चन्दन विजय जी ने की। इस मंदिर की भूमि लाला चीकूमल धोलू राम तथा लाला रामदित्तामलजी खत्री श्वेतांबर जैनसंघ को प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि के उपदेश से भेंट की। (२) यतियों (पूजों) का श्वेतांबर जैन मंदिर चोड़े बाज़ार में है। यह मंदिर उत्तरार्ध. लौंकागच्छ के यतियों ने निर्माण कराया था। इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १९१६ जेठ सुदि ५ को हुई थी। (३) श्वेतांबर जैन मंदिर सिविल लाईन में है । इसका निर्माण कुछ वर्ष पहले हुआ हैं । (४-५) दो श्वेतांबर जैन मंदिरों का निर्माण तथा प्रतिष्ठाएं लुधियाना की दो नई बस्तियों में अभी हुए हैं। (६) जैन श्वेताँबर बड़ा उपाश्रय पुराना बाज़ार में है। (७) श्वेताबर जैनधर्मशाला चावल बाजार में है जो श्री महावीर जैनभवन के नाम से प्रसिद्ध है। (८) इस धर्मशाला में रूपचन्द जैनसाधु का स्मारक भी है । जो बहुत चमत्कारी है। (8) असली पन्ने को हरे रंग की श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा खानकाहडोगरां नगर निवासी (हाल लुधियाना निवासी) प्रोसवाल भाबड़े लाला हंसराज खरायतीलाल जी के पास है। यह प्रतिमा इनके पूर्वजों को जब वे रामनगर में रहते थे तब सत्यवीर, सद्धर्मसंरक्षक मुनि श्री बुद्धिविजय (बूटेराय) जी ने किसी विधवा वृद्धा श्राविका से दिलाई थी। २३-वैरोवाल जिला अमृतसर (१) श्वेतांबर जैन मंदिर है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु हैं। इस मंदिर का निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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