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________________ ३६० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (४) एक बागीचे में यतियों (पूजों) की समाधियाँ हैं जहां चरणबिम्बों सहित वेदिकाएँ बनी हैं। (५) जनाना और मर्दाना दो उपाश्रय हैं । (६) स्थानकवासियों के दो स्थानक हैं । १६ - पटियाला (१) छोटा सा श्वेतांबर जैनमंदिर है । मूलनायक श्री वासुपूज्य जी हैं । वि० सं० १९८६ में नाभभाई बकील ने निर्माण कराया । इसका जीर्णोद्वार तपागच्छीय श्राचार्य श्री विजयप्रकाश चन्द्रसूरि ने कराया । (२) एक मंदिर यहाँ के राजाओं का बनवाया हुआ है । इस मंदिर में सभी हिन्दुनों और जैनों के इष्टदेवों की मूर्तियाँ हैं । जैनतीर्थ कर की प्रतिमा भी है । (३) स्थानकवासियों का स्थानक भी है । १७ - फ़ाज़िलका (१) एक पंचायती श्वेतांबर जैन मंदिर है । मूलनायक श्री चन्द्रप्रभु हैं । इसका निर्माण श्रोसवाल श्री भेरूंदान सावनसुखा की प्रेरणा से वि० सं० १९६० में जैनश्वेतांबर पंचायत ने कराया था । इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० २००१ में प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने की । (२) इस मंदिर में जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि तथा प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि की प्रतिमायें भी स्थापित हैं । (३) एक श्वेतांबर जैनमंदिर का निर्माण ओसवाल चाननराम सावनसुखा ने करवाकर इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १९६७ में कराई । मूलनायक श्री सुमतिनाथ प्रभु हैं । (४) एक जैन श्वेतांबर उपाश्रय है । १८ - मालेरकोटला (१) श्वेतांबर जैन मंदिर है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी हैं । यह पूजों का मंदिर कहलाता है । इस मंदिर का निर्माण उत्तरार्ध लौंकागच्छीय यति श्री महताबऋषि जी ने वि० सं० १६०५ में करवाकर प्रतिष्ठा की थी । वि० सं० १९५० में इसका जीर्णोद्वार हुआ । (२) इस मंदिर में आचार्य विजयानन्द सूरि तथा प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि की प्रति मायें भी विराजमान हैं । दादा श्री जिनकुशल सूरि के चरणबिम्ब भी स्थापित हैं । (३) पंचायती श्वेतांबर जैनमंदिर है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ हैं । आचार्य श्री विजयानन्द सूरि के उपदेश से वि० सं० १९४३ में लाला वस्तीराम- बालकराम अग्रवाल श्वेतांबर जैन ने इसका निर्माण कराया था । (४) यतियों (पूजों) की समाधियाँ भी हैं । (५) श्वेतांबर जैनउपाश्रय है । (६) स्थानकवासियों के दो स्थानक, एक जनाना और मरदाना है । (७) यहां पर यति की गद्दी भी थी । श्रब यति कोई नहीं है । मंदिरों आदि की सब व्यवस्था यहाँ का श्वेतांबर संघ करता है । १६ - रायकोट (१) जैन श्वेतांबर मंदिर जिसमें मूलनायक श्री सुमतिनाथ भगवान हैं । इसका निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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