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________________ २५७ जैनमंदिर और उपाश्रय रहा है । वि० सं० २०३५ का चतुर्मास महत्तरा जी ने अपनी तीन शिष्याओं के साथ कांगड़ा में किया । (३) इसी वर्ष यहाँ पर श्वेतांबर जैनधर्मशाला का भी महत्तरा जी के उपदेश से निर्माण हुआ है । 1 ६ ( गुरु कालदास का ) जंडियाला गुरु ( जिला प्रमृतसर) (१) पंचायती बड़ा श्वेतांबर जैनमंदिर बाज़ार भावड़यां में है । इसमें मूलनायक श्री शांतिनाथ प्रभु हैं | आचार्य श्री विजयानन्द सूरि के उपदेश से इस का निर्माण हुआ था । वि०सं० १९५६ में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी । (२) उत्तरार्धं लौंकागच्छीय यति ( पूज) का जैनश्वेतांबर मंदिर है मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु हैं । पूज जी ने इसका निर्माण कराया था । इसलिये यह पूज जी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है । (३) एक जैन श्वेतांबर उपाश्रय पुरुषों के लिये है । (४) एक जनाना श्वेतांबर जैन उपाश्रय है । (५) एक बागीचे में श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुमंदिर है । उसमें श्री विजयानन्द सूरि के चरण स्थापित हैं । ( ६ ) इसी बागीचे में एक श्वेतांबर जैनमन्दिर है मूलनायक श्री अजितनाथ प्रभु हैं । ( ७-८ ) स्थानकवासियों के दो स्थानक हैं । ७. जम्मू (काश्मीर) (१) जैन श्वेतांबर मंदिर है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी हैं । इसकी स्थापना लगभग विक्रम संवत् १९२५ में हुई थी । उस समय यहां के महाराजा ने मंदिर का शिखर नहीं बनने दिया था। इस मंदिर की स्थापना और निर्माण मुनि श्री बुद्धिविजय ( बुटेराय ) जी के उपदेश से हुए थे। यह मंदिर जीर्ण हो चुका था अतः इसका आमूल-चूल भव्य निर्माण करवाकर जीर्णोद्धार कराया गया । शिल्पशास्त्र के अनुसार शिखरबद्ध मंदिर निर्मित हो जाने के बाद आज से तीन चार वर्ष पहले आचार्य श्री विजय समुद्रसूरि ने इसकी प्रतिष्ठा कराई है। यह मंदिर पटेल चौक में है । (२) एक जैन श्वेतांबर उपाश्रय इस मंदिर जी के सामने है । (३) स्थानकवासियों का एक स्थानक है । (४) एक जैनधर्मशाला है । ८. जालंधर शहर (१) श्वेतांबर जैनमंदिर, मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं। इस मंदिर का निर्माण होशियारपुर निवासी बीसा श्रोसवाल गद्दहिया गोत्रीय लाला पिशौरीमल के पुत्रों नत्थुमल और फत्तुमल ने विक्रम संवत् १६३६ में प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि के उपदेश से किया । विक्रम संवत् १९८२ में श्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के शिष्य श्री विजयविद्या सूरि इस मंदिर की प्रतिष्ठा कराई । 1. कांगड़ा तीर्थ का विस्तार पूर्वक विवरण अध्याय २ में लिख प्राये हैं। यहां से पढकर इसका पूर्ण परिचय प्राप्त करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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