SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (गुजरात) में प्रागमप्रभाकर श्री पुण्यविजय जी के पास भेज दिया था जो उन्होंने वहां के प्राचार्य हेमचन्द्र नामक शास्त्र भंडार में व्यवस्थित करके सुरक्षित कर दिया हैं। (५) इसमें प्रकाशित पुस्तकों में से उपयोगी पुस्तकें श्री वल्लभ स्मारक जैन प्राच्य शास्त्र भंडार दिल्ली में आ गई हैं और बाकी की प्रकाशित पुस्तके अमृतसर के इसी भवन में विद्यमान हैं। (६) यहाँ पर इसी बाजार में स्थानकवासियों का एक स्थानक है । २. अम्बाला शहर (१) हलवाई बाजार में जैन श्वेतांबर मंदिर, मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ जी हैं । इस मंदिर का निर्माण वि० सं० १९४६ में हुआ । वि० सं० १६५२ मार्गशीर्ष सुदि १५ को प्राचार्य श्री बिजयानन्द सूरि ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा की थी। व्यवस्था श्रीसंध करता है वि० सं० २०३५ में इस का जीर्णोद्धार यहाँ के श्रीसंघ ने कराकर इसे विस्तृत (बड़ा) बना दिया है । जो बड़ा ही भव्य-सुन्दर बन गया है। (२) दूसरा श्वेतांबर जैनमंदिर अम्बाला के जैननगर में है। यह नगर थोड़े वर्ष पहले मम्बाला शहर तथा अम्बाला छावनी के बीच के मार्ग पर आबाद हुअा है साथ ही यहां पर नये मंदिर का निर्माण हुआ है इसकी प्रतिष्ठा भी आज से दो-तीन वर्ष पहले हुई है । इसकी व्यवस्था जैननगर का श्वेतांबर संघ करता है। (३) प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के स्मारक रूप में गुरुमंदिर है इसमें प्राचार्य श्री की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है। श्री प्रात्मानन्द जैन हाईस्कूल की बाऊंड्री के अन्दर इस स्कूल की बगल में ही कुछ वष पहले इसका निर्माण यहाँ के श्रीसंघ ने कराया है। (४-५) दो उपाश्रय हैं । एक उपाश्रय मर्दाना है जो हलवाई बाज़ार में श्वेताम्बर मंदिर के साथ सटा हुआ है। दूसरा जनाना उपाश्रय जो पिपली बाज़ार में है। (६) मर्दाना उपाश्रथ के नीचे के हाल में शास्त्रभंडार, पुस्तकालय पौर वाचनालय है । (७-८) स्थानकवासियों के दो स्थानक है। ३. उड़मड़-मयानी अफगानां १. श्री शांतिनाथ का जैनश्वेतांबर मंदिर है। इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १९६३ में मुनि श्री उद्योतविजय जी, मुनि कपूरविजय जी, मुनि सुमतिविजय जी ने की थी। ४. गढ़ दोवाला जिला होशियारपुर १. जैन श्वेतांबर मंदिर है जिसमें मूलनायक श्री ऋषभदेव हैं। इसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी ने वि० सं० १९७७ में की थी। ५. कांगड़ा किला (१) किले के अन्दर एक श्वेतांबर जैनमंदिर जिसमें श्री ऋषभदेव की प्राचीन पाषाण प्रतिमा विराजमान है। मंदिर पुरातत्त्व विभाग के अधिकार में है। जैनों को इसकी पूजा करने का अधिकार है । प्रारती करने तथा ध्वजा प्रादि चढ़ाने का भी अधिकार है। (२) किले के नीचे तलहटी के समीप नये जैन श्वेतांबर मंदिर का निर्माण होकर तपागच्छीय श्वेतांवर जैन महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी के उपदेश से इस तीर्थ का उद्धार हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy