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________________ ३५८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (२) श्वेतांबर जैन उपाश्रय इसी मंदिर के साथ संलग्न है। (३) स्थानकवासियों के दो स्थानक हैं एक जनाना और एक मर्दाना । ___६. जीरा (जिला फिरोज़पुर) (१) श्वेतांबर जैनमंदिर मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ हैं और बहुत चमत्कारी हैं। (२) एक दिगम्बर चैत्यालय है । जिसमें मूलनायक श्री शांतिनाथ हैं । (३-४) दो श्वेतांबर जैन उपाश्रय एक जनाना और एक मर्दाना है । (५) प्रात्मभवन है इसमें एक छत्री के अन्दर श्री विजयानन्द सूरि (प्रात्माराम) जी के चरणविम्ब स्थापित हैं । यह गुरुमंदिर दस कनाल भूमि के बागीचे में है। (६-७) स्थानकवासियों के दो स्थानक हैं । एक जनाना पोर एक मर्दाना । (5) स्थानकवासियों के मर्दाना उपाश्रय में एक वाचनालय है। (6) प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (प्रात्माराम) जी का पालन-पोषण इसी नगर में बीसा प्रोसवाल नौलखा गोत्रीय लाला जोधामल जी के यहां हुआ था। (१०) सिरसा लौंकागच्छ के यति रामलाल जी की स्थानकवासी दीक्षा भी यहीं पर हुई थी। जिन्होंने प्रात्माराम जी के साथ स्थानकवासी संप्रदाय का त्यागकर अहमदाबाद में तपागच्छीय श्वेतांबर जैनसाधु की दीक्षा ग्रहण की थी। जो बाद में विजयकमल सूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। १०. लहरा गांव (१) यह गांव जीरा से लगभग ३ किलोमीटर की दूरी पर है। यह प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि की जन्मभूमि है । आपकी स्मृति में आपके पट्टधर प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सुरि के उपदेश से तथा इनकी आज्ञानुवर्ती साध्वी श्री शीलवती जी की विदूषी तथा चारित्र चूडामणि, जिनशासन प्रभाविका महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी की प्रेरणा से वि० सं० २०१५ को यहां प्रात्मकीर्ति स्तम्भ का निर्माण हुआ है। इसका शिलान्यास और उद्घाटन समारोह इन्हीं साध्वी जी की निश्रा में हुआ है । यहाँ प्रतिवर्ष विजयानन्द सूरि का जन्म महोत्सव चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। उस अवसर पर यहां की यात्रा के लिये दूर दूर से भक्त आते हैं। यहां पर जैनों का कोई घर नहीं है। यहां की सारी व्यवस्था श्वेतांबर जैनसंघ जीरा लहरा गांव निवासियों के सहयोग से करता है। इस गांव के लोगों को बड़ी श्रद्धा है । जो श्रद्धा और भक्ति से गुरुदेव का स्मरण करता है उसकी सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह स्थान बहुत चमत्कारी है। इस इलाके के लोगों ने भी इस सम्बन्ध में अनेक बार चमत्कार देखे हैं। पाकिस्तान बनने से पहले गुजरांवाला में गुरुदेव के स्वर्गवासधाम (उनके समाधि मंदिर) पर स्वर्गवास के दिन जेठ सुदि ८ को प्रतिवर्ष बड़ा उत्सव मनाया जाता था। इस उत्सव में दूर-दूर से गुरुभक्त यहां यात्रा करने आते थे। देश विभाजन बाद अब लहरा गांव ने वह महत्व प्राप्त कर लिया है। यद्यपि यहाँ जैनों की आबादी नहीं है तथापि जीरा का जैन श्वेतांबर श्रीसंघ इस तीर्थ की पूरी व्यवस्था करता है। परन्तु इस प्रात्मकीर्ति स्तम्भ की धूप-दीप से पूजा सेवा सफ़ाई और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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