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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (३) स्व० दिगम्बर विद्वान डा० हीरालाल जैन एम०ए, एल०एल० बी, डी० लिट्, मागधी विश्वविद्यालय के डायरेक्टर तथा षट्खंडादि अनेक दिगम्बर ग्रथो के संशोधक, संपादक, प्रकाशक भी अपनी पुस्तक महावीर पृ० १२३-१२४ में लिखते हैं उसका सार इस प्रकार है 'यद्यपि दिगम्बर विद्वान इस बात को स्वीकार नहीं करते कि भगवान महावीर ने विवाह किया था। इस बात की पुष्टि के लिये उन के पास कोई प्रागम सिद्ध प्रमाण नहीं है । तथा इस के अतिरिक्त हमारे पास अन्य भी कोई सबल प्रमाण नहीं है कि जिसके द्वारा हम महावीर को ब्रह्मचारी सिद्ध कर सकें। भगवान महादीर के जीवन संबन्धी ग्रंथों में श्वेतांबर मान्य कल्पसूत्र अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन है अतः उस में महावीर के विवाह का कथन प्रमाणभूत होना अधिक संभव है । इस के सिवाय यह बात भी निर्विवाद है कि भगवान महावीर को अपने माता-पिता, भाई पर अनन्य श्रद्धा थी। अतः वे अपने बड़ों की विवाह करने की आज्ञा को एकदम अस्वीकार कर देते यह हमारी दृष्टि से एकदम असंभव था अतः उन्होंने अवश्य विवाह किया होगा । (४) दिगम्बर नाथुराम प्रेमी ने अपनी पुस्तक 'जैनसाहित्य और इतिहास' पृष्ठ १०० में महावीर को कंवारा मानने वालों की शंका का समाधान करते हुए लिखा है कि तिलोयपण्णत्ति दिगम्बराचार्य यतिवृषभ कृत में जिस नीचे लिखी गाथा का अर्थ दिगम्बर लोग कंवारा करते है उसका अर्थ पूर्वापूर्व सम्बन्ध देखते हुए कंवारा नहीं राजकुमारावस्था है। यथा णेमि-मल्लि-वीरो कुमारकालम्मि वासुपुज्जो य ।। पासो वि य गहिद तवा सेस जिणा रज्ज-चरमम्मि ॥" ४ ॥६७०।। अर्थात्-नेमिनाथ, मल्लिनाथ, महावीर, वासुपूज्य पोर पार्श्वनाथ इन पाँच तीर्थ करों ने कुमारकाल में और शेष १६ तीर्थ करों ने राज्य के अन्त में तप (दीक्षा) ग्रहण किया। इस गाथा को स्पष्ट करते हुए प्रेमी जी लिखते हैं कि महावीर प्रादि पाँच को छोड़कर शेष तीर्थ कर राजा हुए। ये पांचों क्षत्रीय वंश के थे और राजकुलों में उत्पन्न हुए थे। इन्होंने राज्याभिषेक की इच्छा नहीं की और राजकुमारावस्था में ही प्रवजित हो गये । (५) अतः उपर्युक्त चारों संदर्भो से ये तथ्य स्पष्ट हैं कि १. दिगम्बरों के पास महावीर का सांगोपांग चरित्र नहीं है जो कुछ टूटा-फूटा है भी वह एकदम प्रमाणित नहीं है। २. इस चरित्र को पूरा करने के लिये श्वेतांबर मान्य कल्पसूत्र आदि प्रागम शास्त्रों से अपनी गलत मान्यताओं की पुष्ट करने के लिये महावीर चरित्र को तोड़-मरोड़ कर संकलन करके लिखने के प्रयास आज तक चालू हैं। ३. महावीर आदि पांच तीर्थ करों के अविवाहित रहने का कोई प्रमाण इनके पास नहीं है तो भी अपनी प्रागमविरुद्ध इस गलत मान्यता को दिगम्बर-श्वेतांबर साहित्य में इन पांचों तीर्थकरों के राजकुमार अवस्था में दीक्षा लेने के प्रसंग को लेकर अप्रासंगिक और ऊटपटांग मर्थ करके असफल प्रयत्न करके हर प्रकार से अनुचित कुमारकाल को कंबारा मान बैठने की भल के शिकार हो रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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