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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
भटारष गादी प्र आवेगा तो पटा माफक मान्या जावेगा। श्री हेमाचार जि पेली श्री बड़गच्छ रा भटारष जि ने बड़ा कारण सु श्री राजम्हे मान्या जी माफ़क आपने आपरा पगरा गादी प्र पाटवी तपागच्छ रा ने मान्या जावेगा री सुवाये देसम्हे आप्रे गच्छ रो देवरो (मंदिर) तथा उपासरो वेगा जी रो मुरजाद श्री राज सुवा दुजा गच्छरा भटारष आवेगा सो राषेगा। श्री समरण, ध्यान, देवजात्रा जठ साद करावसी भूलसी नहिं ने वेगा पदारसी । परवानगी पंचोली गोरो समत १६४५ वर्ष आसोज सुद ५ गुरवार
प्रोसवाल कुल नररत्न कावड़िया गोत्रीय
श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक श्रावक
धर्म-वीर, दान-वीर और युद्ध-वीर उदयपुर के महाराणा प्रतापसिंह के महामंत्री
भामाशाह
चा
__ भामाशाह का पड़दादा चांडा कावड़िया जो रायकोठारी गोत्र का प्रोसवाल था। वह दिल्ली का रहने वाला था। उसके बाप-दादा बादशाह की नाराजगी से लड़ाइयों में मारे गए थे। उस समय चांडा बच्चा ही था, इसलिए उसको कांवड़ी (बॅहगी) में डालकर मेवाड़ ले जाया गया जिससे वह बच गया। कावड़ी में ले जाने के कारण उसके और उसकी संतान का नाम कावड़िया प्रसिद्ध हो गया।
चांडा का बेटा टाडा और उसका बेटा भारमल्ल था। ये लोग बादशाहों-राजाओं के यहाँ कोठारी-कामदार थे। फिर उदयपुर के दीवान (महामंत्री) हो गये थे। दीवान होने से पहले भ इनके पास अनगिनत धन दौलत थी इसीसे वह साह (शाह) कहलाये। जिन दिनों मेवाड़ाधिपति महाराणा प्रतापसिंह अकबर के साथ युद्ध करते-करते हताश हो चुका था । युद्ध के लिए धन तथा साधनों का एकदम अभाव होने पाया था और महाराणा संकट में पड़ कर अकबर के साथ सन्धि करने को मेवाड़ छोड़कर अपने चेतक घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा था, उस समय भामाशाह श्री केसरियानाथ-ऋषभदेव की यात्रा के लिए धुलेवा में अाया हुअा था। उसे खबर मिलते ही उसने झट से घोड़े पर सवार होकर प्रताप का पीछा किया और जंगल में जा मिला। महाराणा को नमस्कार करके बड़े विनय के साथ हाथ जोड़े खड़ा हो गया। देश छोड़ जाने का कारण धनाभाव है ऐसा जानकर भामाशाह ने महाराणा को ढारस बंधाई और १२ वर्ष तक २५००० सैनिकों तथा युद्ध के लिए अपना धन प्रताप के चरणों में समर्पित कर दिया और साथ में यह भी वचन दिया कि जब तक मेवाड़पति महाराणा की विजय न होगी तब तक यथासंभव धन का प्रभाव नहीं होने दूंगा। महाराणा लौट आये। सेना का दृढ़ संगठन करके युद्ध के लिए डट गए। भामाशाह तथा इसके छोटे भाई ताराचन्द ये दोनों भी शस्त्रों से सज्ज होकर युद्ध में जूझ गए। ताराचन्द युद्ध में वीरगति प्राप्त कर गया और भामाशाह अन्त तक महाराणा के कन्धे से कन्धा लगाकर युद्ध में शामिल रहे। प्रतापसिंह विजयी हुए, जैनश्रावक कुलभूषण महामंत्री भामाशाह के सहयोग, चतुराई तथा भुजाबल के प्रताप से महाराणा का नाम-मान और गौरव अमर बनाने के लिए इस महापुरुष ने अपना तन, मन, धन सब कुछ महाराणा के चरणों में अर्पण कर
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