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जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि की हस्तलिपि
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दिया । यदि वह आड़े वक्त में सहयोग न देता तो आज महाराणा प्रताप का यश समाप्त हो गया होता । भामाशाह जैनधर्मी थे, धर्म पर उनकी दृढ़ श्रद्धा थी इसलिए वे धर्मवीर थे । महाराणा को अपना सर्वस्व प्रपर्ण करके अनन्य दानवीर होने का परिचय दिया और युद्ध में लड़कर शूरवीरता दिखलाकर युद्धवीर होने का गौरव प्राप्त किया । महाराणा की शान प्रान-बान को कायम रखने के लिए पूरा-पूरा सहयोग देकर देश के लिए बलिदान होने का महादर्श उपस्थित किया। क्योंकि भामाशाह के पूर्वज दिल्ली निवासी थे इसलिए उनकी नस नस में पंजाब की वीरता कूट कूट कर भरी हुई थी। जिसने महाराणा की शान में बट्टा नहीं लगने दिया । धन्य है इस नरवीर को ।
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जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि की हस्तलिपि
तथा भाषा
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