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महाराणा प्रतापसिंह और हीरविजय सूरि
७. तीन मुगल सम्राट तथा तीन जैनाचाय जिस प्रकार अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ ये तीन मुग़ल सम्राट भारत के गौरव को बढ़ाने वाले हो गये हैं वैसे ही जैन श्वेतांबर तपागच्छीय प्राचार्यों में भी श्री हीरविजय सूरि, श्री विजयसेन सूरि तथा श्री विजयदेव सूरि ये तीनों जैनधर्म के गौरव बढ़ाने वाले हुए हैं। इन तीनों प्राचार्यों का उपर्युक्त तीनों सम्राटों ने सत्कार किया, सन्मान किया और इनके तप, त्याग, ज्ञान तथा चारित्र से प्रभावित होकर जैनधर्म के प्रति ऊँचा आदर करके और उनके उपदेशों को आचरण में लाकर अपना और जनता जनार्दन का भला किया। विजयदेव सुरि से देवसर नामक गच्छ की स्थापना हुई । ये शाहजहां के समकालीन थे और विजयसेन सूरि के पट्टधर शिष्य थे । इनका प्रभाव शाहजहाँ पर पड़ा था।
इस प्रकार हम जान पाये हैं कि मुगल बादशाह बाबर से लेकर शाहजहाँ तक पांच मुगल शासकों पर तपागच्छीय श्वेतांबर जैनाचार्यों तथा उनके शिष्यों-प्रशिष्यों का बराबर प्रभाव रहा। जिसके कारण इनका शासनकाल उत्तरोत्तर भारतवासियों के लिए शांति का कारण और सुखप्रद बन गया।
महाराणा प्रताप सिंह और हीरविजय सूरि जगद्गुरु हीरविजय सूरि को महाराणा प्रतापसिंह ने भी अपने राज्य में पधारने के लिए अनेक बार विनति पत्र लिखे थे। वह भी जगद्गुरु की कृपा तथा प्राशीर्वाद का लाभ उठाना चाहता था । परन्तु वृद्धावस्था के कारण आप का वहाँ पधारणा न हो सका। महाराणा के अनेक विनति पत्रों में से हम यहाँ एक पत्र का उल्लेख करते हैं। यह पत्र पुरानी मेवाड़ी भाषा में महाराणा ने स्वयं अपने हाथों से जगद्गुरु को लिखा था। इस पत्र से इतिहास पर अच्छा प्रकाश पड़ेगा।
महाराणा प्रताप सिंह का पत्र स्मस्त श्री मगसूदानन महासुभस्थाने सरब प्रोपमालायक महाराज श्री हीरबजे सूरजि चरणकमलां प्रणे स्वस्त श्री बजे-कटक चावडरा देश सुथाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रताप संघ जि ली० पगे लागणो वंचसी ।
अठारा समाचार भला है. आपरा सदा भला छाईजे । आप बड़ा है, पूजनीक हैं- सदा करपा राखे जीसु ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं प्रापरो पत्र प्रणा दनाम्हें पाया नहीं सो करपा कर लेषावेगा । श्री बड़ा हजूररी वगत पदारवो हुवो जी में अठांसु पाछा पदारता पातसा अकब जिने जेनावादम्हें ग्रान रा प्रतिबोद दीदो । जीरो चमत्कार मोटो बताया जीव हंसा (हिंसा) छरकली (चिड़ियां) तथा नाम पषेरु (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपगार कीदो. सो श्री जेनरा ध्रम में आप असाहीज प्रदोतकारी प्रबार कीसे (समय) देखता आप जु फेर वे न्हीं प्रावी पूरब हीदुसस्थान उत्रदेश गुजरात सुदा चारुदसा (चारों दिशा) म्हें ध्रमरो बड़ो उदोतकार देखाणो जठा पछे आप रो पदारणो हुवो न्हीं सो कारण कही वेगा पदारसी आगें सु पटा परवाणा करण रा दस्तुर माफक आप्रे हे जी माफक तोल मुरजाद सामो प्रावो सा बरतेगा श्री बड़ा हजूररी वषत आपरी मरजाद सामो पावा री कसर पडी सुणी सो काम कारण लेखे भूल रहीवेगा जी रो अदेसो नहीं जाणेगा । आगे सु श्री हेमाचार जिने श्री राजम्हे मान्या है जीरो पटो कर देवाणो जी माफक अरोपगरा
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