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________________ मंगल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव ३१५ महान कार्यों के कारकुनों, राज्य कारभार के व्यवस्थापकों, जागीरदारों और करोड़ियों को सूचित किया जाता है कि दुनियाँ के (दिनोंको) जीतने के अभिप्राय से हमारा इन्साफी इरादा (न्याययिक विचार) ईश्वर को प्रसन्न करने में दत्तचित्त है । हमारे दृष्टिकोण का पूरा उद्देश्य तमाम दुनियाँ (सारे विश्व) को जिसे परमेश्वर ने बनाया है, उसे प्रसन्न करने की तरफ है। (उसमें भी) विशेष करके पवित्र विचारवालों और मोक्षधर्मवालों का, जिनका उद्देश्य सत्य की खोज और परमेश्वर की प्राप्ति है; उन्हें संतुष्ट करने के लिये हम (विशेष) ध्यान रखते हैं। अत: विवेकहर्ष परमानन्द महानन्द, और उदयहर्ष ये तपा-यति (तपागच्छ के साधु) (सूरि-सवाई) विजयसेन सूरि, विजयदेव सूरि तथा नन्दिविजयजी जो खुशफहम की पदवीधारी हैं; उनके शिष्य हैं। ये हमारी हज र में थे, इन्होंने निवेदन और विनती की थी कि 'मापके द्वारा सुरक्षित (आधीन) सारे राज्य में हमारे पवित्र १२ दिन जो भादों पर्युषण के दिन हैं, उनमें (सारे) हिंसा करने के स्थानों में किसी भी प्रकार की हिंसा न की जावे (जो आपके बाप-दादा के समय से चला आता है)। ऐसा करने से आपको गौरव प्राप्त होगा और आपकी उच्च तथा पवित्र प्राज्ञा से बहुत जीव बच जावेंगे। इस कार्य का उत्तम फल आपके पवित्र, श्रेष्ठ और मुबारिक राज्य को प्राप्त होगा।" ___ हमारी बादशाही दयादष्टि प्रत्येक ज्ञाति, (जाति) और धर्म के उद्देश्य तथा कार्य को उत्कृष्ट करने के लिये अपितु सभी प्राणियों को सुखी रखने की है । इसलिये इस निवेदन को स्वीकार करके दुनिया को माने हुए और मानने लायक जहांगीरी हुक्म हुआ है कि उपर्युक्त १२ दिनों में प्रतिवर्ष हमारे संरक्षण में राज्य के अन्दर प्राणियों की हिंसा न की जावे और इस (हिंसा) कार्य के साधन भी न जुटाये जावें । एवं इस विषय के सम्बन्ध में प्रतिवर्ष नई अाज्ञा (फ़रमान) अथवा सनद मांगी न जावे। इस हुक्म का पालन (सब) करें और इस (फ़रमान) के विरुद्ध कोई कार्य न किया जावे। नम्र में नम्र प्रबुलखैर के लिखने से और महमूद सैयद की नकल से छाप छाप पढ़ी नहीं जाती 1. विवेकहर्ष तपागच्छीय पं० हर्षानन्द के शिष्य थे। इस महाप्रतापी ने बहुत राजाओं-महारा जाओं को प्रतिबोध देकर जीवदया सम्बन्धी कार्य कराये थे। कच्छ के राजा भारमलजी को जैनधर्मी बनाया था। कच्छ में अनेक जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठायें भी की थीं। महाजनवंश मुक्तावली का कर्ता खरतरगच्छीय यति रामलाल ने इन्हें खरतरगच्छीय लिखा है सो यह बात इतिहास से सर्वथा विरुद्ध है। यह फ़रमान विवेकहर्ष को स्पष्ट तपागच्छीय लिखता है। 2. परमानन्द उपयुक्त विवेकहर्ष का गुरु भाई था। तथा हर्षानन्द का शिष्य था। इन्हें भी ___यति रामलाल खरतरगच्छ का लिखता है जो इतिहास से बिल्कुल विरुद्ध है। 3. महानन्द उपर्युक्त विवेकहर्ष का शिष्य था। 4. विजयदेव सरि, विजयसेन सूरि के शिष्य थे। मांडवगढ़ में जहांगीर बादशाह को मिले थे। वि० सं० १६७४ में जादशाह ने प्रसन्न होकर इन्हें महातपा की पदवी दी थी। 5. यह शेख मुबारक का पुत्र और शेख अबुलफ़ज़ल का भाई था । 6. महमूद सैयद-यह सुजातखान शादी बेग का दत्तक पुत्र था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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