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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
कोई उनका जीर्णोद्धार (मुरम्मत) करना चाहे अथवा उनका निर्माण करना चाहे तो कोई कमअकल अथवा धर्मान्ध उन्हें रोके नहीं । वर्षा की रुकावट अथवा अन्य अनेक कार्य जो खुदा (ईश्वर) के अधिकार में हैं, यदि सा दा को न पहचाननेवाले अपनी नासमझी और बेवकूफी से उन्हें जादू का काम जानकर बेचारे खा दा को पहचानने वालों (जैनसाधुओं) के माथे मढ़ते हैं अथवा उन्हें अनेक प्रकार के कण्ट देते हैं और वे जो धर्मक्रियाएं करते हैं उन में भी रुकावट डालते हैं। उन बेचारों पर ऐसे प्रारोप न होने दें, उन्हें अपने स्थान पर भक्ति का कार्य और धर्मक्रियाएं करने दें (ऐसी व्यवस्था करें)।"
(इस) श्रेष्ठ फरमान के अनुसार (अधिकारी लोग) अमल में लाकर ऐसी सावधानी बरतें कि इस फरमान का पालन उत्तम से उत्तम रीति से हो । और इस (फरमान) के विरुद्ध कोई अन्य हुकम न करें। अपने कर्तव्य को जानकर कोई भी इस फरमान की अवहेलना न करे। ता० १ शहयु, २ रा महीना, इलाही सन् ४६ तदनुसार ता० २५ महीना सफर सन् १०१० हिजरी ।
फरमाणों के पीछे लिखे का वर्णन
फरवरदीन महीना, जिन दिनों में सुर्य एक राशी में से दूसरी राशी में जाता है वे दिन, ईद, मेहर के दिन, प्रत्येक मास का रविवार, वे दिन कि जो दो सूफियों के बीच में आते हैं, रजब महीने के सोमवार, प्राबान महीना जो बादशाह के जन्म का महीना है, प्रत्येक सौर्य मास का पहला दिन जिस का नाम ओरमझ (संक्राति) है तथा बारह पवित्र दिन (श्वेतांबर जैनों का पर्युषण पर्व) जो (गुजराती) श्रावण मास के अन्तिम छह दिन (भादों वदि १० से अमावस तक) और भादों सुदि के पहले छह दिन (भादों सूदि १ से ६ तक) मिलकर होते हैं।
निशाने आलीशान को नकल असल मूज़ब है
मोहर छाप
इस छाप में मात्र काज़ीखान मुहम्मद का नाम पढ़ा जाता है इसके सिवाय अन्य अक्षर नहीं पढ़े जाते।
मोहर छाप
इस छाप में अकबरशाह मुरीद जादा दाराव इस प्रकार लिखा है।
बादशाह जहांगीर का फरमान फरमान नं. ३ का अनुवाद
अल्लाह अकबर ता० २६ फ़रवरदीन सन् ५ के इकरार (वचन) के अनुसार फ़रमान की नकल हमारे द्वारा सुरक्षित (प्राधीन) किये हुए राज्यों के बड़े हाकिमों, बड़े दीवानों, दीवानी
1. दाराव का पुरा नाम मिर्जा दारावखान था। यह अबदुर्रहीम खानखाना का पुत्र था।
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