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मुगल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव
प्रवर्तक नहीं होगा) तब से लेकर आज तक के दूसरों के न बनाये हुए (मंतिम धर्मप्रवर्तक के असल) ग्रंथ उन के पास हैं ।
फ़ादर झेवियर और मैंने उनके साथ बातचीत की और पूछा कि अन्त में आप लोगों का उद्धार हैं अथवा क्या होगा?
उपर्युक्त बाबनसा हमारा दुभाषिया (दूसरी भाषा में अनुवाद करके बताने वाला) था। उसने हमें कहा-कि इस विषय पर हम फिर बात करेंगे। परन्तु हमे दूसरे दिन वहां से निकल गये । इसलिये हम से फिर जाना नहीं हो सका। यद्यपि उन्होने हमें बहुत ही आग्रह किया हुना था।
मुगल सम्राटों के चार फरमान जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि के लिये दिया हुआ फरमान
फरमान नं० १ की नकल
अल्लाहु अकबर जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह गाजी का फरमान । अल्लाहु अकबर की छाप (मोहर) के साथ श्रेष्ठ फरमान की नकल
(असल मजब है) महान-राज्य के सहायक, महान-राज्य के वफ़ादार, अच्छे स्वभाव और उत्तम गुणवाले अजित राज्य को सुदृढ़ बनाने वाले, श्रेष्ठराज्य के विश्वासपात्र, शाही उदारता के भोगी, बादशाह की दृष्टि में पसंद, उच्चदर्जे के खानों में उदाहरण स्वरूप, मुबारिज्जुद्दीन (धर्मवीर) प्राजमखाँ ! जो बादशाही मेहरबानियों और बक्षीशों की बहुतात (वृद्धि) से श्रेष्ठता को पाये हुए हैं, वह ज्ञात करें कि जो भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजोंवाले, भिन्न-भिन्न धर्मवाले, भिन्न-भिन्न विचारधारा वाले और भिन्न-भिन्न पंथवाले हैं। सभ्य अथवा असभ्य, छोटा अथवा बड़ा, राजा अथवा रंक, दाना (बुद्धिमान) अथवा नादान (बेसमझ), दुनिया के प्रत्येक जाति तथा श्रेणी के लोग कि जो प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर का नूर प्रकट करने का स्थान है एवं दुनियाँ को पैदा करनेवाले द्वारा निर्माण किये हुए भाग्य को प्रकटकरने की असल जगह है तथा सृष्ठि संचालक (ईश्वर) की आश्चर्यकारक अमानत (धरोहर) है। वे अपने-अपने श्रेष्ठमार्ग में दृढ़ रह कर प्रत्येक हेतु को प्राप्त करें तथा तन मन का सुख भोग कर प्रार्थना तथा नित्यक्रियाओं में एवं अपने प्रत्येक हेतु को पाने में संलग्न रहते हुए श्रेष्ठ बक्षीस करनेवाले (ईश्वर) की तरफ़ से हमें दीर्घायु मिले और उत्तमकार्य करने की प्रेरणा मिलती रहे, ऐसी दुपा (प्रार्थना) करें । क्योंकि मनुष्य जाति में से एक को सिंहासनारूढ़ होकर ऊचे चढ़ने में और सरदारी की पोषाक पहनने में समझदारी (सार्थकता) यही है कि उस असाधारण मेहरबानी और अत्यन्त दया ---जो ईश्वर की सम्पूर्ण दया का प्रकाश है, उसे अपनी दृष्टि में रखकर यदि उन सब (प्रजा) के साथ मित्रता प्राप्त न करसके तो कम से कम सब के साथ सुलह और संप रखकर पूजनेयोग्य परमेश्वर के सब बन्दों केसाथ मेहरबानी, स्नेह और दया के मार्ग पर तो चलें तथा ईश्वर की पैदा की हुई सब वस्तुओं (प्राणियों) को जो महासामर्थ्य परमेश्वर की दृष्टि का फल है, उन (प्राणियों) की सहायता करने की दृष्टि रखकर उन की प्राव
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