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________________ ३०६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म सम्राट सर्वधर्म समन्वयवादी बना, मांस, मदिरा, परस्त्रीगमन, वैश्यादिगमन, शिकार प्रादि सातों कुव्यसनों का त्यागी बनकर सचरित्रवान बना, भारत में बसने वाली सब जातियों, कौमों, धर्मों, मजहबों को समझने तथा उनमें से वास्तविक कल्याणकारी मार्ग अपनाने में अपनी प्रजा को भी सन्मार्ग में प्रेरित करने में रात-दिन प्रयत्नशील रहने लगा। शिकार, मांसाहार और हत्याओं का स्वयं त्याग करके अतिक्रूर से दयालु बना। दूसरों को भी सदाचारी बनाने केलिए साम-दाम-दंड आदि नीतियों से काम लेने लगा। देश में सब धर्म सम्प्रदायों और जातियों में परस्पर प्रेम और मेलजोल बढ़ाने में अग्रसर हुआ। सतत धर्म चर्चाएं करके वह आत्मा, परमात्मा, पूर्वजन्म, पुनजन्म, आत्मा के साथ कर्मों के सम्बन्ध को ठीक-ठीक समझ पाया था। जिसके परिणामस्वरुप अकबर के जीवन, धर्मविश्वास और उसकी राजनीति में बड़ा भारी परिवर्तन हुना । ऐसा होने से अकबर को भारत पर एकछत्र राज्य सत्ता में शाँत वातावरण पाने का और प्रजा को अपने-अपने धर्मों का पालन करने का सुअवसर प्राप्त हया। प्रायः सर्वथा शून्य से प्रारंभ करके इस वीर, प्रतापी, महत्वाकांक्षी, दृढ़निश्चयी, उदारसम्राट ने एक प्रति विशाल, सुगठित, सुव्यवस्थित, सुशासित, समृद्ध एवं शक्तिशाली, साम्राज्य का निर्माण एवं उपभोग किया। महादेश भारतवर्ष के बहुभाग पर उसका एकाधिपत्य था, उसके शासनकाल में देश की बहुमुखी उन्नति हुई। विश्व के सर्वकालीन महानरेशों में मुग़लसम्राट अकबर की गणना की जाती है। उसकी इस महान सफलता के कारणों में उसकी उदारनीति, न्यायप्रियता, धार्मिकसहिष्णुता, वीरों और विद्वानों का समादर और स्वयं को भारती और भारतीयों को अपना ही समझना संभवतया प्रमुख थे। यदि यह महत्वाकांक्षी था तो गुणग्राहक, दूरदर्शी एवं कुशलनीतिज्ञ भी था। शांति चन्द्रोपाध्याय अपने कृपारसकोश नामक ग्रंथ में लिखते हैं कि-"पहले मृतकधन को जैनाचार्य हेमचन्द्रसूरि के उपदेश से विक्रम की १३वीं शताब्दी में महाराजा कुमारपाल ने छोड़ा था और अब इस समय प्राचार्य हीरविजय सूरि के उपदेश से अकबर बादशाह ने छोड़ दिया है। पहले गायों को बन्धन ने अर्जुन ने मुक्त किया था, इस समय उनको वधमुक्त अकबर ने किया है । प्रजा से लिए जाने वाले जजिया कर को त्याग करने से इस बादशाह ने उज्ज्वल यश से कर्ण, विक्रम और भोज जैसे दानवीर नृपतियों के यश को भी उल्लंघन कर ऊंचे प्रादर्श को कायम किया है। जीवहिंसा का निषेध करके स्वयं और अनेक राजाओं से भी दयाधर्म के पालन करनेकराने से सर्वशिरोमणि बन गया है। मतलब यह है कि कुमारपाल राजा के बाद अकबर बादशाह ने ही दया का विशेष पालन किया-कराया है। शांतिचन्द्र उपाध्याय ने कृपारस कोश में लिखा है कि इसी ग्रंथ के कारण बादशाह ने ये सब कार्य किये। यह सब प्रताप हीरविजय सूरि प्रादि जैन साधनों के तप-त्याग-संयम, निस्वार्थ संयममय उत्तम चरित्र, सर्वधर्म सहिष्णुता, एवं स्व-पर-कल्याणकारी सद्ज्ञानमय जीवन का ही था। अतः यदि सच पूछा जाये तो यह सारा उपकार भारतीय प्रजा पर जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि ने किये, इससे भारतीय प्रजा कभी उऋण नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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