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________________ मुगल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव ३०५ पूर्वक बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सुना करता था । (इसका उल्लेख पहले भी किया जा चुका है)। (२) आपने अकबर के पौत्रों को अनेक विषयों का शिक्षण दिया था। (३) प्रकबर काश्मीर से लाहौर वापिस लौटने पर एक दिन चीतों की लड़ाई देख रहा था, उस समय एक हरिण ने उसे अपने सींगों से घायल कर दिया, जिससे वह मूर्छित हो गया, परिणामस्वरूप सम्राट पचास दिनों तक चारपाई पर पड़ा रहा । उस समय सारा साम्राज्य चिन्ताग्रस्त हो गया। अकबर के प्रति विश्वासपात्र दो ही व्यक्ति थे-एक अबुलफजल और दूसरे भानुचन्द्रोपाध्याय, जिन्हें अकबर से मिलने की छूट थी। उपाध्याय जी का सानिध्य पाकर सम्राट ने पूर्ण स्वास्थ्य लाभ किया। सारा साम्राज्य आनन्दित हो उठा। २. प्राचार्य हीरविजय सूरि प्रावि जैन मुनियों का अकबर पर प्रभाव-इन जैन साधुनों की विपूल-भव्यता, अनिवार्य आकर्षण शक्ति, असाधारण चरित्र, व्यापक ज्ञान सम्पन्नता, इस बात से मिल जाते है जिनके प्रभाव से अकबर जैसा चतुर, कट्टर और कठिनाई से प्रसन्न होनेवाला सम्राट भी एक विनम्र आज्ञाकारी शिष्य के समान आप के वश में होगया और उसके मन पर काबू पा लेना पाप जैसे ज्योतिर्धरों के अलौकिक सामार्थ्य का जीता-जागता सबूत है । इस प्रभाव के कारण हिन्दू और जैन जनता के लाभ के लिये, प्राणीमात्र को अभयदान दिलाने के लिये आप लोगों ने फरमान (प्राज्ञापत्र) प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। यह पाप के सामर्थ्य का ज्वलंत उदाहरण है। ३. सार्वजनिक हित की दृष्टि-हीरविजय सूरि आदि जैनमुनियों की दृष्टि सर्वजनहिताय थी। उन्होंने केवल जनों के लिये ही नहीं, परन्तु सारे मानवसमाज के लिये और पशु-पक्षियों की भलाई के लिये ही सब कुछ किया। इसकी पुष्टि के लिये इनके द्वारा प्राप्त किये हुए मुगल सम्राटों के फरमान ही बस है। अकबर ने वर्ष में छह मास तक जीववध बन्द करने का आदेश दिया था। इस बात का उल्लेख बदायुनी ने इस प्रकार किया है "In these days 996 (Hijri), 1583 A.D.1 (1640 Vikram Samwat) new orders were given. The killing of animals on certain days was forbiden, as on sundays, because this day is scared of the Sun, during the first 18 days of the month of Farwardin; the whole month of Abin (the month in which His Majesty was born) and several other days to please the Hindus. The order was extended over the whole realm and Capital punishments was inflicted on every one who acted against the command.2 (Badaoni P. 312) बदायूनी इस बात की भी पुष्टि करता है कि सम्राट हिन्दुओं की तरह अपने मस्तक पर तिलक लगाता था, दाढ़ी मुंडवाने लग गया था, हिन्दू पोषाक को पहनना बहुत पसन्द करने लगा था, प्रतिदिन सूर्यसहस्र नाम का पाठ करता था, शिकार खेलना तथा मांस खाना एकदम बन्द कर दिया था। सारांश यह है कि जगद्गुरु जैन श्वेतांबराचार्य श्री हीरविजय सूरि प्रादि के उपदेश से 1. इसी वर्ष अकबर ने हीरविजय सूरि को जगद्गुरु की पदवी देकर उन्हें अपना गुरु माना था । 2. इसका भावार्थ पहले दिगे गगे उदाहरणों में भा चुका है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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