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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
कर कुष्ट रोग से निरोग हुआ और श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक लघु-खरतरगच्छ के मुनि भानुचन्द्र जो अभयधर्म उपाध्याय का शिष्य था से जैनदर्शन, छंद शास्त्र, काव्य, साहित्य प्रादि अनेक प्रकार के शास्त्रों का अभ्यास किया । उसके बाद वि० सं० १६७६ में 'पागरा' में एक दिगम्बर विद्वान के सम्पर्क में आकर कुछ दिगम्बर ग्रंथों का अभ्यास किया और वि० सं० १६८० में आगरा में इसने एकान्त निश्चय को मानकर अपने नवीन पंथ की स्थापना की, जो आजकल तेरहपंथ दिगम्बर संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। अपरंच दिगम्बर विद्वान लाला दिगम्बर दास जैन ने मरुधर केसरी मुनि श्री मिश्रीमल जी के अभिनन्दन ग्रंथ में खंड ३ पृ० ८३-६७ पर मुग़ल सम्राट और जैनधर्म शीर्षक लेख में मुग़ल सम्राट बाबर से लेकर अंतिम मुग़ल सम्राट के राज्यकाल में होने वाले मुग़ल और हिन्दू राजाओं के राज्यों में कतिपय जैनलोगों का परिचय दिया है कुछ को उनके राज्य में ग्रंथ लेखक के रूप में, किन्हीं का जैन मन्दिरों के निर्माता के रूप में और किन्हीं का उनके वहाँ कारभारी के रूप में उल्लेख किया है। इस नामावली में कतिपय दिगम्बरों का भी नामोल्लेख किया है किन्तु किसी ने मुग़लसम्राट से सम्पर्क करके उन पर कोई अपना जैन धर्म संबन्धी प्रभाव डाला हो ऐसा कुछ भी उल्लेख नहीं किया। इससे भी स्पष्ट है कि मुग़ल सम्राट पर श्वेतांबर जैनाचार्यों, मुनियों का ही पूरा पूरा प्रभाव पड़ा था।
____ अकबर की मृत्यु आगरा में ईस्वी सन् १६०५ (वि० सं० १६६२) में हुई। उस समय तो बनारसीदास कोढ़रोग से जर्जरित हो रहा था। उस समय तक तो उसे जैनधर्म का कोई विशेष बोध भी नहीं था। इसलिये बनारसीदास के अकबर पर प्रभाव की बात सर्वथा निराधार है । लगता है कि मात्र अपने मत की महिमा बतलाने का यह असफल प्रयास किया गया है ।
इसके अतिरिक्त अन्य भी किसी दिगम्बर मुनि अथवा विद्वान का न तो फतेहपुर सीकरी की धर्मसभा में धर्मचर्चा में शामिल होने का प्राइने अकबरी जैसे ग्रंथ में उल्लेख ही है और न ही किसी अन्य प्रमाणिक इतिहास पुस्तक में है।
इस विषय पर मैंने एक प्रसिद्ध दिगम्बर स्कालर से भेंट की। उन्होंने कहा कि यहाँ जो सेवड़ा शब्द का प्रयोग हुआ है वह किसी दिगम्बर गृहस्थ के लिये है। क्योंकि सेवड़ा सरावगी का अपभ्रंश है और सरावगी दिगम्बर गृहस्थ को कहते हैं । उनका यह तर्क सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा और उसकी इस भूल पर खेद भी हुआ। पाठकों को यह जानना चाहिए कि अकबर के फरमानों में सेवड़ा शब्द ही रविजय सूरि के नाम के साथ प्राया है । अतः यहाँ पर सेवड़ा शब्द का अर्थ श्वेतांबर ही है । दूसरा कोई नहीं है।
१. अकबर की श्रद्धा-- इस महान प्रभावक प्राचार्य श्री हीर विजय सूरि, उपाध्याय श्री भानुचन्द्र तथा इनके शिष्य खुशफहम मुनि श्री सिद्धिचन्द्र का मुगल दरबार पर कैसा प्रभाव था, इस प्रसंग का सुसबद्ध, शृंखलाबद्ध स्पष्ट तथा उपाध्याय सिद्धि चन्द्र द्वारा विरचित "भानुचन्द्र गणि चरित्र" में से लग जाता है। उपाध्याय भानुचन्द्र के निर्मल चरित्र और महान तेजस्वी व्यक्तित्व की छाप मगल सम्राट अकबर के हदय पट पर कितनी गहरी सम्मान पर्वक स्पर्शी पड़ी थी, इस बात का परिचय हमें इस ग्रंथ से मिल जाता है । (१) अकबर प्रति रविवार को भानुचन्द्र उपाध्याय से संस्कृत में उनके द्वारा रचित सूर्यसहस्र नाम स्तोत्र का पाठ खूब एकाग्रता
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