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मुग़ल साम्राज्य और जैनधर्म
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३. अकबर के समय में जिन्सो के भावगेहूँ= १ रुपये का १८५ रतल (६० सेर)
सफ़ेद खांड-१ रुपये की १७ रतल जव=१ रुपये का २७७।। रतल (१३५ सेर)
काली खाँड=१ रुपया की ३६ रतल चावल मोटा=१ रुपया का १११ रतल
नमक=१ रुपया का १३७ रतल गेहूं का आटा=१ रुपया का १४८ रतल
जवार=१ रुपया का २२२ रतल दूध= १ रुपया का ८६ रतल
बाजरा=१ रुपया का २७७॥ रतल धी=१ रुपया का २१ रतल
मकई=१ रुपया की २७७॥ रतल एक तरफ़ प्रजा के सुख के लिए अकबर द्वारा की गई अनुकूलताओं से प्रजा को निश्चिंतता मिली थी दूसरी तरफ़ रोज़ के इस्तेमाल करने की वस्तुएं भी कितनी सस्ती थीं कि चाहे कैसा भी गरीब क्यों न हो वह अपना निर्वाह आसानी से कर लेता था। उपर्युक्त तालिका से हम स्पष्ट जान पाते हैं।
४- वर्तमान स्वतंत्र भारत में जिन्सों के भाव-(ई० स० १९७६) गेहूं १ किलो-रुपया १३०
गेहूँ का प्राटा १ किलो, रुपया १.५० जव , , १२५
सफ़ेद खांड
, २.५० चावल मोटा , १८०
नमक
, , ०८० दूध , २७५
बाजरा
, १.४० घी , २५०० मकई
१.४० ५- अकबर के विषय में पुर्तगेज़ पादरी पिनहरो (Pinheiro) के दो पत्र
पिनहरो नामक पुर्तगेज़ पादरी के लाहौर से ता० ३ सितम्बर १५७५ ईस्वी (वि० सं० १६५२ में अकबर की मृत्यु से १० वर्ष पहले) को अपने देश में लिखे हुए पत्रों का एक वाक्य डा० विसेन्ट ए० स्मिथ के अंग्रेजी अकबर में से हम उद्धृत कर आये हैं। उन पत्रों में उसने जो जैनों के संबंध में विशेष रूप से लिखा था, वह इस प्रकार है
(1) “This king (Akbar) worships God and the Sun, and is a Hindu [Gentile] ; he follows the sect of Vertic, who are like monks living in Communities (Congregatione] and do much penance They eat nothing that has had life [anima] and before they sit down, they sweep the place with a brush of cotton, in order that it may not happen [non si affironti] that under them any
1. देखें-The value of money at the Court of Akbar by W.H. Moreland (article)
Journal of the Royal Associatic Society 1918 A.D. July and October
P.375,385. 2. सेर ८० तोला 3. किलो ८६ तोला 4. पिनहरो के इन दोनों पत्रों का अंग्रेजी अनुवाद सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा० वीसेंट ए०
स्मिथ ने अपने ता० २-११-१९१८ ई० के पत्र के साथ जैनाचार्य शास्त्रविशारद विजयधर्म सूरि को भेजा था ।
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