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मुग़ल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव
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का लक्ष्य रहता है। तथा उनको कतल (हत्या) करने में एवं उनका भक्षण करने में तत्पर रहते है। यह वास्तव में उन की अज्ञानता और निर्दयता का कारण है. कोई भी मनष्य निर्दयता को रोकने में जो प्रांतरिक सुन्दरता रही हुई है उसे परख नहीं सकता, परन्तु उल्टा प्राणियों की कब्र अपने शरीर में बनाता है- यदि शाहेनशाह के कन्धों पर दुनियाँका भार (राज्य का भार) न होता, तो वह मांसाहार से एकदम दूर रहता।
इसी प्रकार डा० विन्सेंट स्मिथ ने भी अकबर के विचारों का उल्लेख किया है। जिन में ये भी हैं
__"Men are so accustomed to meat that, were it not for the pain, they would undoubtedly fall on to themselves.”
"From my earliest years, whenever I ordered animal food to be cooked for me, I found it rather tasteless and cared little for it. I took this feeling to indicate the necessity for protecting animals, and I refrained from animal food."
"Men should annually refrain from eating meat on the anniversary of the month of my accession as a thanks-giving to the Almighty, in order that the year may pass in prosperity.”
"Butchers, fishermen and the like who have no other occupation but taking life should have a separate quarter and their association with others should be prohibited by fine."l
अर्थात्---"मनुष्यों को मांस खाने की ऐसी आदत पड़ जाती है कि --- यदि उन्हें दुःख न होता तो वे स्वयं अपने आप को भी अवश्य खा जाते ।”
"मैं अपनी छोटी उम्र से ही जब-जब मांस पकाने की आज्ञा करता था तब-तब वह मुझे नीरस लगता था । तथा उसे खाने की मैं कम अपेक्षा रखता था। इसी वृत्ति के कारण पशु रक्षा की आवश्यकता की तरफ़ मेरी दृष्टि गई और बाद में मैं मांस भोजन से सर्वथा दूर रहा।"
__ "मेरे राज्यारोहण की तिथि के दिन प्रतिवर्ष ईश्वर का आभार मानने के लिये कोई भी मनुष्य मांस न खाये। जिस से सारा वर्ष आनन्द में व्यतीत हो।"
"कसाई, मच्छीमार तथा ऐसे ही दूसरे, कि जिन का व्यवसाय केवल हिंसा करने का ही है, उनके लिये रहने के स्थान अलग होने चाहिये और दूसरों के सहवास में वे न पावें, उनके लिये दंड की योजना करनी चाहिये ।" - उपर्युक्त तमाम वृतांत से हम इस निश्चय पर पाते हैं कि-अकबर की जीवन मूर्ति को सुशोभित–दैदीप्यमान बनाने में सुयोग्य - जैसी चाहिये वैसी दक्षता जो किसी ने बतलाई हो तो वे हीरविजय सूरि प्रादि जैनसाधुनों ने ही बतलाई थी। मात्र इतना ही नहीं परन्तु उपाध्याय भानुचन्द्र और ख शफ़हम सिद्धिचन्द्र ने अकबर पर उपकार तो किया ही था किन्तु उसके पुत्र जहाँगीर तथा पौत्र शाहजहाँ के जीवन पर भी खूब प्रभाव डाला था और उन्हें जीवदया, धर्मसहिष्णुता, एवं प्रजावात्सल्यता का महान् अनुरागी भी बनाया था। इसके लिये एम० ए० के
1. Akbar The Great Mogal. P.P. 335-336.
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