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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
वे नैतिक, शारीरिक, धार्मिक और आध्यात्मिक शास्त्रों में तथा धर्मोन्नति की प्रगति में और मानव जीवन की सम्पूर्णता प्राप्त करने में दूसरे सब ( सम्प्रदायों के ) विद्वानों और पंडित पुरुषों से सब प्रकार से श्र ेष्ठ थे । वे अपने मत की सत्यता और हमारे (मुसलमान) धर्म के दोष बतलाने के लिये बुद्धिपूर्वक और परम्परागत प्रमाण देते थे । और ऐसी दृढ़ता और दक्षता के साथ अपने मत का समर्थन करते थे कि जिस से उनका केवल कल्पित जैसा मत स्वतः सिद्ध प्रतीत होता था और उसकी सत्यता के लिये नास्तिक भी शंका नहीं ला सकता था । "
ऐसे अधिक सामर्थ्यवान जैनसाधु अकबर पर अपना ऐसा प्रभाव डालें, यह क्या संभव
नहीं ?
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अकबर ने जब अपने व्यवहार में इतना अधिक परिवर्तन कर डाला था तो इस पर से ऐसा मानना अनुचित नहीं है- "कि अकबर के दया संबन्धी विचार बहुत ही उच्चकोटि तक पहुंच चुके थे ।" इस बात की पुष्टि के अनेक प्रमाण मिलते हैं । देखिये बादशाह ने राजाओं के जो धर्म प्रकाशित किये थे, उन में उस ने एक यह धर्म भी बताया था ।
"प्राणीजगत जितना दया से वशीभूत हो सकता है, उतना दूसरी किसी वस्तु से नहीं हो सकता । दया और परोपकार - ये सुख और दीर्घायु के कारण है । 1
अबुल फ़ज़ल लिखता है कि - "अकबर कहता था -- यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि मांसाहारी एक मात्र मेरा शरीर ही खाकर दूसरे प्राणियों के भक्षण से दूर रह सकते तो कैसा सुख का विषय होता ! अथवा मेरे शरीर का एक अंश काटकर मांसाहारी को खिलाने के बाद भी यदि वह अंश पुनः प्राप्त होता, तो भी मैं बहुत प्रसन्न होता। मैं अपने एक शरीर द्वारा मांसाहारियों को तृप्त कर सकता | 2
दया सम्बन्धी कैसे सरस विचार ? अपने शरीर को खिलाकर मांसाहारियों की इच्छा पूर्ण कराना, परन्तु दूसरे जीवों की कोई हिंसा न करे, ऐसी भावना उच्चकोटि की दयालुवृत्ति के सिवाय कदापि हो सकती है क्या ?
श्रबुलफ़ज़ल 'नाइने अकबरी' के पहले भाग में एक जगह ऐसा भी लिखता है
"His Majesty cares very little for meat, and often expresses himself to that effect. It is indeed from ignorance and cruelty that, although various kind of food are obtainable, men are bent upon injuring living creatures, and lending a ready hand in killing and eating them; none seems to have an eye for the beauty inherent in the prevention of cruelty, but makes himself a tomb fcr animals. If His Majesty had not the burden of the world on his shoulders, he would atonce totally abstain from meat.
अर्थात् — शाहेनशाह मांस पर बहुत कम लक्ष्य देता है और कई बार तो वह कहता था कि यद्यपि बहुत प्रकार के खाद्य पदार्थ मिलते हैं तो भी जीवित प्राणियों को दुःख देने का मनुष्यों
1. श्राइने अकबरी खंड ३ जैरिट कृत अंग्रेजी अनुवाद पृष्ठ ३८३-३८४
2. श्राइने अकबरी खंड ३ पृष्ठ ३६५
3. Ain-i-Akbri by H. Blochmann Vol. I, P. 61.
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