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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
गुरु से शुभ मुहूर्त पूछकर वज़ीर बादशाह के दरबार में गया । उसको निरोग देखकर बादशाह की खुशी की हद न रही। उसके मुंह से गुरु की प्रशंसा सुनकर बादशाह ने गुरु को बुलाने के लिए पालकी भेजी। पर गुरु ने पालकी में बैठने से इन्कार कर दिया। गुरुजी पैदल चलकर बादशाह के वहाँ पहुचे। बादशाह ने बड़ी ताजीम (विनय, श्रद्धा और भक्ति) के साथ सूरि जी का स्वागत किया और झुककर सलाम (प्रणाम) किया । एकांत स्थान में गुरुजी को ऊंचे आसन पर बिठलाया और उनसे धर्मचर्चा करके बड़ा प्रभावित हुआ।
बादशाह को भूख न लगने का रोग था । बहुत उपचार किये, पर कोई लाभ न हुआ। वह अपने जीवन से भी हताश हो चुका था। उसकी प्रार्थना करने पर गुरुजी ने रोग की चिकित्सा करके उसे स्वस्थ कर दिया । बादशाह की खुशी का पारावार न रहा । सूरिजी अब बादशाह के पास आनेजाने लगे।
एक दिन बादशाह सैर को निकला और श्रीपूज्य जी को भी साथ में ले गया। जंगल में पहुंचकर बादशाह ने हिरण का शिकार करने के लिए उसपर निशाना बांधा । गुरु ने उसका हाथ थाम लिया। एक आम के वृक्ष के नीचे शाह गुरु के साथ विश्राम के लिए बैठ गया। बातों ही बातों में गुरु को कोई चमत्कार दिखलाने के लिए कहा । गुरु ने क्षेत्रपाल को बुलाया और कहा कि तुम इस वृक्ष में प्रवेश करो। जब शाह यहां से चले तब तुम वृक्ष को साथ लेकर उसके पीछे-पीछे चलना । जब शाह मुड़कर देखे तब तुम वृक्ष में से निकल जाना और वक्ष को वही छोड़ देना।
गुरु ने शाह से कहा कि जब आप यहाँ से चलेंगे तब वृक्ष भी आपके पीछे-पीछे चलेगा जिससे इसकी छाया आपके सिर पर रहेगी । यदि आप पीछे मुड़कर देखेंगे तो वृक्ष आपका साथ छोड़ देगा।
शाह और गुरु साथ-साथ चल पड़े। वृक्ष भी छाया करते हुए पीछे हो लिया। नगर के निकट पहुंचने पर शाह ने पीछे मुड़कर देखा तब वृक्ष वापिस अपने स्थान को लौटता हुअा बादशाह ने अपनी आंखों से देखा।
शाह ने गुरुजी से इसका कारण पूछा। गुरु ने कहा, बादशाह सलामत ! आपने बड़े-बड़े शत्रु ओं की सेनाओं के छक्के छुड़ा दिये हैं, उनके मद को चकनाचूर कर दिया है, ऐसी आपकी शक्ति है। तो इस बेचारे पेड़ की क्या औकात है कि आपकी निगाह के सामने टिक सके। यह सुनकर शाह बहुत खुश हुआ और पूज्य जी से धन दौलत, पालकी, जागीर आदि लेने के लिए प्रार्थना करने लगा । गुरु जी ने यह सब परिग्रह लेने से इनकार कर दिया और कहा कि यदि देना ही चाहते हो तो एक वचन दो। उस वचन के अनुसार जब मैं जो चाहूंगा तब पाप से मांग लूंगा और वह आप को देना होगा? शाह ने गुरु की बात को स्वीकार कर लिया।
मुसलमानों के रोज़े थे अट्ठाइसवें रोजे के दिन बादशाह ने वज़ीर को गुरुजी के यहां भेजा और कहलाया कि आप अपने चेले को भेज दीजिए, वह मुझे आशीर्वाद दे जावे ।
__ गुरुजी ने शिष्य को भेजा, उस दिन उनतीसवां रोज़ा था। उसने शाह को आशीर्वाद दिया । शाह ने शिष्य से पूछा कि, "चांद किस दिन दिखलाई देगा?" शिष्य ने भूल से कह दिया कि आज शाम को चांद दिखलाई देगा। यह कहकर शिष्य गुरु के पास लौट आया।
शाह के पास बैठे हुए दरबारियों ने कहा कि बादशाह सलामत ! आज चांद नहीं निकलेगा।
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