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________________ श्री भावदेव सूरि २८५ पूज झूठ बोलता है; चांद कल निकलेगा। शाह ने कहा-यह चेला उस गुरु का है जिसका वचन अन्यथा नहीं जाता। ___ जब गुरु को मालूम हुआ कि शिष्य शाह को भूल से आज चांद निकलने को कह आया है, तब शिष्य की बात को सत्य करने के लिए क्षेत्रपाल को बुलाया और उसे कहा कि चांदी की थाली को लेकर आकाश में जाकर इस प्रकार रखो कि जैसे द्वितीया का चांद निकला हो । क्षेत्रपाल ने वैसा ही किया। श्रीपूज जी शाह के पास गये और बोले-"आज चाँद निकल आया है । आयो उसे देखने चलें।" सब लोगों ने चांद को देखा । शाह बोला-गुरुजी ! कल ईद होगी। तब चारों तरफ़ शहनाइयां बजने लगीं। शाह ने गुरुजी से कहा-अब आप अपना काम कहो ? गुरुजी ने कहा-बादशाह सलामत! चांद कल ही निकलेगा। शिष्य ने आपको बतलाने में भूल की थी। उसकी बात को सत्य रखने के लिए ही मुझे ऐसा करना पड़ा है । देखते ही देखते चांदी की थाली आकाश से गिर कर गुरुजी के चरणों के पास आ गिरी । आकाश में अन्धकार छा गया। शाह और सब उमरावों ने यह कौतुक अपनी आंखों से देखा और सब गुरुजी के चरणों में झुक गये । इस चमत्कार को देखकर सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । सब के मुंह से एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी---धन्य हैं गुरुदेव और धन्य है इनकी करामात! ईद के बाद बादशाह ने श्रीपूज जी को पास बुलाया और कहा कि गुरुजी ! अब आप फ़रमावें कि आप का क्या काम किया जावे ? गुरु बोले ---भटनेरगढ़ में हाकम खेतसी रहता है । वह बड़ा अत्याचारी है, उसने वहां मेरे निर्दोष जैनश्रावकों को जेल में कैद कर रखा है। वहां मेरी पोषाल भी तोड़ दी गई है और मेरे सब चेलों को भी कैद कर रखा है । मुझे भी बहुत कष्ट दिये हैं । अतः उस खेतसी को राहे-रास्त (सही रास्ते) पर लायो। मेरे चेलों और श्रावकों को जेल से छडायो। मेरी पोषाल भी उससे नई बनवाकर दो। अब आप बिना विलम्ब यह मेरा सब काम करो ? बादशाह ने सेना के साथ भटनेरगढ़ की तरफ़ कूच कर दिया (चल पड़ा)। वहां पहुंचकर गरुजी की मंत्रशक्ति से उसका गढ़ टूटा और शाह की सेना ने गढ़ में प्रवेश किया। खेतसी को परा. जित कर हाथी के पैरों के साथ बांधकर शाह के पास लाया गया। शिष्यों और श्रावकों को कैद से छोड दिया गया । खेतसी ने हाथ जोड़कर श्रीपूज भावदेव सूरि से अपने द्वारा किये गये अपराधों की क्षमा मांगी और उनकी प्राज्ञा को आजीवन मानने का वचन दिया। गुरुजी ने उसे उदारता पूर्वक क्षमा कर दिया । खेतसी को छोड़ दिया गया और उसे पूर्ववत वहां का अधिकारी कायम रहने दिया। श्रीपूज ने बादशाह को वापिस लौट जाने को कहा। बादशाह गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करके लाहौर वापिस लौट गया और जाते हुए कह गया कि जब भी कोई काम पड़े तो सेवक को याद फ़रमाइएगा । बीकानेर के राजा दलपतराय ने खेतसी को हुक्म देकर भावदेव सूरि की पोषाल का अपने राजकोष से नव निर्माण करवा कर उन्हें सौंप दी। बादशाह ने समुनेर (सामाना) में मस्जिद के समीप गुरु के कहने से एक जैनमंदिर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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