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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
खंभात में मुसलमान सिद्दीक नामक बड़ा व्यापारी था। वह वहाँ का मालिक सा बन बैठा था। उस ने एक बार वहाँ के नगरसेठ की सम्पत्ति लूट ली और उस का ख न करवा दिया। नगरसेठ के लड़के ने इस जुल्म की वस्तुपाल से शिकायत की। वस्तुपाल ने सिद्दीक को उचित दंड देना निश्चय किया। जब सिद्दीक को यह बात मालूम हुई तो उस ने अपनी सहायता के लिए अपने मित्र शंख नामक राजा को धन का लालच देकर बुला भेजा । जबरदस्त लड़ाई हुई, शंख मारा गया । सिद्दीक कहाँ भाग गया कुछ पता न लगा । वस्तुपाल की विजय हुई। इसके बाद खंभात शहर में जाकर सिद्दीक का घर खुदवाने पर वस्तुपाल को बहुत अधिक सोना तथा बहुत से कीमती जवाहरात मिले। जिनकी कीमत उस समय तीन अरब रुपये के लगभग थी।
एकदा दिल्ली के बादशाह मौजुद्दीन ने गुजरात पर चढ़ाई कर दी। जब वस्तुपाल तेजपाल को यह समाचार मिला तो ये दोनों भाई अपनी बड़ी भारी सेना लेकर आबू पहाड़ तक उस के सामने गये। वहाँ भयंकर युद्ध करके उन्होंने मौजुद्दीन के हजारों सैनिकों का सफाया करवा डाला । बेचारा मौजुद्दीन हताश होकर वापिस दिल्ली भाग गया।
ये सब लड़ाइयाँ लड़-चुकने के बाद उन्हों ने समुद्र के किनारे महाराष्ट्र तक अपनी दुहाई फिराई । इस प्रकार इन दोनों भाइयों ने अनेक छोटे-बड़े युद्ध करके गुजरात के राजा वीरधवल की सत्ता अच्छी तरह जमाई और चारों तरफ़ शांति तथा व्यवस्था करके विजय का डंका बजाया।
इन के प्रयास से इस राज्य का विस्तार-१. दक्षिण में शैल (श्रीपर्वत कांची के समीप) २. पश्चिम में प्रभास, ३. उत्तर में केदार प्रौर ४. पूर्व में काशी तक हो गया था।
__ जहाँ ये दोनों भाई कुशल राजनीतिज्ञ थे, अजय युद्धवीर थे; वहाँ वे धर्मवीर और महान दानवीर भी थे । मात्र इतना ही नहीं था किन्तु वे उच्चकोटि के धर्मज्ञ एवं धर्मपालक भी थे। कवि ने माता को संबोधित करते हुए कहा है कि
"जननी जनियो भक्तजन, का दाता का शूर। ___ नहीं तो रहजो बांझड़ी, मति गंवाइयो नूर ॥" अर्थात्-हे माता ! धर्मवीर, दानवोर, शूरवीर पुत्र को जन्म देना । यदि ऐसा संभव न हो तो कुपात्र पुत्र को जन्म न देकर बांझ (निःसंतान) रहना ही उत्तम हैं। कुपात्र पुत्र को जन्म देकर अपने नूर (सामर्थ्य) को मत गंवा देना ।
अतः ये दोनों भाई धर्मवीर, दानवीर और शूरवीर सर्वगुण सम्पन्न थे। जगत में वीर-पुरुषों को पूज्यदृष्टि से देखा जाता है। "टामस कारलाइल अपने हीरोज़ एण्ड हीरोशिप में लिखता है कि
In all times and all places the hero has been worshipped. It will ever be so. We all love greatmen. Does not every trueman feel that he is himself made higher by doing reverence to what is really above him ? No nobler or more blessed feeling dwells in man's heart............. Heroworship exists, has Existed and will forever exist universally among man's mind.
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